आज हम आपके लिए दो दोस्तों की एक सच्ची कहानी (the story of my experiments with truth in hindi) लेकर आयें हैं. जिसको पढ़कर आपमें एक नई सोच का संचार होगा। यही नही बल्कि आपको पढ़ने के बाद कुछ ही पता चलेगा कि हमारे अंदर इंसानियत जिन्दा होने के कितने अच्छे परिणाम मिलते हैं.
The Story of My Experiments with Truth in Hindi
किसी गांव में रामू और श्यामू नामक दो बहुत अच्छे मित्र रहते थे। वो हमेशा एक दूसरे के सुख-दुःख में साथ देते थे।
वो दोनों अपना गुजारा चलाने के लिए कम्बल बेचने का काम साथ-साथ किया करते थे।
उन दोनों को महिने में ज्यादा पैसे तो नहीं आया करते थे पर वो लोग किसी तरह अपना गुजर बसर कर लेते थे।
श्यामू किसी भी भगवान को नहीं मानता था। जबकि रामू देवी-देवताओं को मानता था। यही बात से उनदोनों की सोच अकसर टकराव का कारण बनती थी।
एक दिन की बात है। रामू ने श्यामू से कहा, “भाई हमलोग इतनी मेहनत करते है पर हमारा कम्बल कोई खरीदता भी नहीं और आजकल तो हम एक भी कम्बल बेच नहीं पा रहे है”।
श्यामू ने फिर रामू कहा, “ऐसे में तो हमारा गुजर बसर भी नहीं हो पायेगा”। रामू ने श्यामू से कहा, “जैसी भगवान की इच्छा वो चाहेगें तो हम कभी भी खाली पेट नहीं सोयेंगे। ऐसा बोलकर रामू उदास होकर चुप हो गया।
श्यामू ने फिर रामू कहा, “तुम जानते हो ना की मैं भगवान को नहीं मानता। भगवान के चाहने से कुछ नहीं होता भाई यह हमदोनों की मेहनत से हमारा पेट भरता है”। यह बोलकर श्यामू रामू की ओर देखकर मुस्कुराने लगा।
रामू ने श्यामू से कहा, ऐसा नहीं है भाई। देखना एक ना एक दिन तू भी भगवान को मानने लगेगा। जिस पर रामू ने जवाब दिया कि फिलहाल अभी कम्बल बेचने चले नहीं तो रात को हमें भूखा पेट ही सोना पड़ेगा।
उसके बाद दोनों अपनी-अपनी टोकड़ी में कम्बल रख घर से बाहर निकल पड़ते हैं।
रामू और श्यामू गांव-गांव घूम कर आवाज लगाते है। कम्बल ले लो, कम्बाल लेलो। तभी श्यामू की नजर एक बूढ़ि औरत पर पड़ती है। वह ठण्ड से कांप रही थी।
श्यामू ने रामू से कहां रामू भाई देखना यह बुढ़ी औरत ठण्ड से कांप रही है। हमें इसकी मदद करनी चाहिए ?
रामू ने श्यामू से कहा, “छोरो न यार, हम अगर ऐसे फ्री में ही लोगों की मदद करने लगें तो हमारा क्या होगा? हमारे पास इतना पैसा होता तो हम यूं ठंड में गांव-गांव भटकते नहीं होते।
श्यामू ने रामू से कहा तुम्हारी बात ठीक हैं पर हमारे पास जो है इस बुढ़ी मां की मदद करनी चाहिए। यह बोलते ही श्यामू ने अपनी टोकड़ी से एक कम्बल निकाल कर उस बुढ़ी औरत को कम्बल ओढा दिया और पूछा मां इतनी ठंड में तुम बिना गर्म कपड़े का क्या कर रही हो? तुम्हें देखकर तो लग रहा है कि आप अच्छे घर से हो तुम्हारी साड़ी काफी महंगी है। फिर यहां ऐसे क्यों बैठी हो?
बुढ़ी औरत ने श्यामू से कहा मै दूसरे गांव से यहां अपनी पहचान वाले के साथ सतसंग आई थी। पर सतसंग खत्म होते ही काफी भीड़ यहां हो गई। जिसके कारण मेरा शाल भी कही गीर गया और मैं अपनी सहेलियों से बिछड़ गई। बेटा तुमने मेरी इतनी मदद की, क्या थोड़ी मदद और कर सकते हो?
रामू और श्यामू एक दूसरे की ओर देखने लगे। फिर श्यामू ने पूछा क्या मदद चाहिए?
बुढ़ि औरत ने उसे उसके गांव साथ चलने को बोला रामू ने तुरंत बोला मां हमारा इस वक्त कम्बल बैचने का टाईम है। अगर हम कम्बल नहीं बेचेगें तो रात हमें भूखा पेट सोना पड़ेगा। हमारे पास पैसे भी नहीं है।
बुढ़ी औरत ने कहा मैं तुम्हें कम्बल के पैसे और किराये के पैसे दे दूँगी। तुम सिर्फ मुझे मेरे गांव मुझे ले चलो।
श्यामू ने तुरंत बुढ़ी औरत के साथ चलने की रजा मंदी दे दी। कुछ देर चुप सोचने के बाद रामू भी उनके साथ चलने को तैयार हो गया।
रामू और श्यामू दोनों पहले अपने घर जाकर कम्बल की टोकड़ी रख उस औरत के पास आते है और उसके साथ उसके गांव निकल पड़ते है।
रामू और श्यामू बुढ़ी औरत के गांव पहुंचते है तो रास्ते में जो भी व्यक्ति मिलता उस बुढ़ी औरत को झुक कर नमस्ते करता। वो बुढ़ी औरत उस गांव की जमींदार थी। उसके पास बहुत पैसे जमीन और जायदाद थी। जब रामू और श्यामू घर के अंदर गये तो वह एक कोठी थी। दोनों की आंखे वहां रखे सामान को देख चिलमिला रही थी।
रामू और श्यामू से बुढ़ी औरत इतना प्रसन्न थी कि उन्हें इतनी दौलत जमीन दे दी। जिससे दोनों दोस्त की सात पुस्त बैठ कर खा सकती थी।
श्यामू ने फिर रामू से कहा देख भाई मेहनत करने से ही हमें इतना धन प्राप्त हुआ। भगवान में भक्ति दिखाने से अच्छा तुम किसी व्यक्ति की मदद करोंगें तो उनका आशीर्वाद से ज्यादा मिलती है।
हम इस कहानी यह शिक्षा मिलती है कि भगवान की भक्ति से ज्यादा आप अपने अंदर इंसानीयत को जिंदा रखना। अगर आप कभी किसी परेशान व्यक्ति को देखे तो आपसे जितना हो सके उसकी मदद कर देनी चाहिए।
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