Short Motivational Story in Hindi: किसी जमाने में समुद्र के तट पर मछुआरों की एक बस्ती रहा करती थी। इन मछुआरों की बस्ती में एक परिवार बड़ा ही गरीब था। इसी परिवार का एक इकलौता बेटा था जिसका नाम शेखर था।
अब चूँकि शेखर इकलौता था तो उसे जरूरत से ज्यादा प्यार मिलता था। वह बहुत ज्यादा शरारतें करता लेकिन उसे कभी भी डांट नहीं पड़ती। नतीजा यह हुआ कि वह जिद्दी, बददिमाग हो गया। धीरे-धीरे शेखर बड़ा हुआ लेकिन शरारतें कम नहीं हुई, बल्कि उम्र के साथ शरारतें भी बढ़ती रही।
आये दिन उसकी शिकायतें उसकी माता-पिता को मिलती रहतीं। पिता ने सोचा क्यों ना इसे कहीं काम पर लगवा दूँ, चार पैसे भी घर में आ जाएगें और इसे शरारतें करने का मौका भी नहीं मिलेगा।
एक दिन उसके पिता को पता चला कि अभी-अभी जिस नये जहाज ने को समुद्र में उतारा गया हैं, उसके कैप्टन को जहाज पर कुछ नए कर्मचारी चाहिए।
वह तुरंत घर आया और शेखर से पूछा की क्या वह जहाज पर काम करना चाहेगा? शेखर ने भी सोचा अगर वह जहाज पर काम करेगा तो उसे भिन्न-भिन्न जगहों पर जाने का मौका मिलेगा। उसने भी तुरंत हामी भर दी।
उसके हाभी भरते ही माता-पिता को राहत मिली कि वह अब इस जगह से चला जाऐगा, कुछ काम भी नया सीख लेगा और पैसे भी कमाने लगेगा।
शेखर के जाने की बात पर वे उदास भी थे। अच्छा-बुरा जैसा भी है आखिर को एकलौता बेटा है। इस उम्र में , जबकि सहारे की जरूरत महसूस होती है, शेखर के चले जाने से उन्हें अकेले रह जाना पड़ेगा।
भींगे मन से, भींगी आंखों से उन्होंने शेखर को विदा किया। शेखर गया तो जो गया फिर उसने मुड़ कर कभी खबर भी नहीं ली। साल पर साल बीतते गए। उसके पिता का निधन हो गया। मां की कमर झुक गई। कपड़ों पर दर्जनों पैबंद लग गए।
वह अपने बेटे या उसकी किसी खबर के इंतजार में समुद्र के तट पर बैठी रहती। लोग उसे देखते तो उसे कहते वो तुम्हें भूल गया। तू उसका इंतजार करना बंद कर दें।
वह सोचती झूठी ही सही लेकिन मै तो इसी उम्मीद में जी रही हूं कि एक दिन शेखर जरूर आएगा। एक दिन उसका शेखर लौट आया और उसके तकलीफ भरे दिनों का अंत हो जायेगा।
शेखर जहाज पर एक अदना-सा कर्मचारी होकर गया था लेकिन आज वह कुछ सालों में जहाज का कैप्टन बन गया। बड़ी-बड़ी दूनियां और कई-कई देश देखें।
शेखर आज अपनी जहाज लेकर अपने ही घर की ओर समुद्र पर आया था। वह बस वहां घुमने आया था किसी से मिलने नहीं?
पर जैसे ही शेखर पर उसकी मां की नजर पड़ी उसके जहाज के पास वह पहुंच गई।
शेखर जब अपनी मां के सामने आया तो मां को पहचान तो लिया लेकिन अमीरी के नशे में इतना डुबा था। एक फटेहाल बुढ़िया को मां कैसे कहता? उसने नाक भैं सिकोड़कर कहा- इसे किसने यहां आने दिया? अभी निकालो यहां से, अपने कर्मचारीयों को शेखर ने कहा। उसकी मां को यह बहुत बुरी लगी। उसी वक्त वो जमीन पड़ गिर पड़ी और रोने लगी।
उसने अपने दोनों हाथ आकाश की ओर उठाये और कहा, इस मगरूर और बददिमाग नौजवान को, जो कि मेरा बेटा है, तुझे जो भी कठोर सजा मंजूर हो वो दे।
यह कह कर उसकी मां वही मर गई।
कुछ समय ही बिता होगा कि समंदर में तूफानी लहरें उठने लगीं। लहरें शेखर की जहाज को अपने साथ डुबाकर ले गई। शेखर उसी लहरों में बह गया। उसके कर्मचारी जान बचाकर वहां से भाग गए। इस तरह एक मगरूर व्यकित का अंत हो गया।
हमें बुजुर्गों के प्रति ऐसा व्यवहार करना चाहिए कि उनकी दुआएं मिलें, ऐसा नहीं कि उनकी बददुआएं मिलें। बुजुर्गों का दिल दुखाकर, आप कभी खुश नहीं रह पाओगें। यही हमें इस कहानी से सीखना चाहिए।
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