Premchand Ki Kahani Hindi Me | प्रेमचंद की कहानी Short Stories

Premchand Ki Kahani Hindi Me – हिंदी उपन्यास व् कहानियों के विद्वान् रचयिता मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 में यूपी के बनारस में हुआ था। उनके साहित्य को न केवल हिंदी में बल्कि उर्दू में भी पढ़ा जा सकता है। प्रेमचंद की कहानियों में समाजिक दशा का वर्णन जैसे जात-पात भेदभाव, अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच का भेदभाव झलकता था। उनकी कहानी बच्चे से लेकर बूढ़े बुजुर्ग बड़े ही चाव से पढ़ते थें। उन्होंने गबन, कर्मभूमि, प्रेमाश्रम, गोदान आदि जैसे कई लोकप्रिय उपन्यास लिखें हैं।

Premchand Ki Kahani Hindi Me

आइये हम प्रेमचंद की  कुछ कहानियों (Premchand Ki Kahani Hindi Me) को पढते हैं-

स्वार्थी दैत्याकार | प्रेमचंद की कहानी Short Stories

एक थी हरी भरी वादी। फूलों व् फलों से लदी पेड़ों वाली वादी। चारों ओर हरियाली ही हरियाली थी। रंग-बिरंगे पक्षियों का तो घर था। वहां की वादियों में पंछियों की आवाजें गूंजती रहती थी।

उस वादियों में एक बहुत बड़ा मकान था। उस मकान में एक लम्बा, चौड़ा व्यक्ति रहता था। वह व्यक्ति जितना बड़ा था मगर उसका दिल उतना ही छोटा था।

उस व्यक्ति को आस-पास वाले लोग दैत्य कहते थे। ना तो वह किसी से बात करता और ना ही किसी भी व्यक्ति के बातों का कोई जवाब ही देता था।

उसके बगीचे में तरह-तरह के फल, फूल और सब्जियां, हर मौसम में ही रहती थी। लोग उसके बगीचे को दूर से देख ललचाते रहते थे।
वह व्यक्ति सारा फल और सब्जियां अकेले ही खाया करता था। एक बालक जबसे उसके बगीचे और उस बगीचे के मालिक के बारे में सुना था। उसके मन में उस बगीचे को देखने की तीव्र इच्छा हुई।

वह बालक चुपके से उस बगीचे में घुस गया और फल और फूलों को देख बहुत खुश हुआ। उसने मन में अब एक और इच्छा हुई। अब वह उस फलों का स्वाद भी ले।

बालक ने थोड़े से फल तोड़े और चुपके से बगीचे में बैठ खाकर वापस चला गया।

वह अपने गांव जाकर अपने दोस्तों से उस बगीचे के बारे में बताया पर किसी ने उसकी बात को सच नहीं समझा। सब ने यही कहा वहां एक दैत्य रहता है जो बच्चों को खा जाता है। हमें उस तरफ जाने से तभी तो मना किया गया है।

बच्चें ने अपने दोस्तों को कहा, “कल मेरे साथ चलना। हम वहां मीठे और ताजा फल खाकर वापस आ जायेंगे।

उसके दो दोस्त उसके साथ चलने को राजी हो गए। सुबह-सुबह वह उस बगीचे के पास पहुंचे। उस वक्त वह आदमी अपने बगीचे में टहल रहा था। थोड़ी देर के बाद वह अपने मकान में चला गया।

उसके बाद वह तीनों बगीचे में दाखिल हो गए और बहुत सारा फल तोड़ एक झाडी के पास फलों को इक्ठा कर वहीं बैठकर खाने लगें। मकान के अंदर से उस आदमी के जब झाड़ियों को हिलते देखा तो बगीचे में वापस आ गया।

वहां उसने देखा तीन बच्चें वहां बैठ फल खा रहे हैं । वह तीनों भी इस आदमी को देख डर के मारे कांपने लगे।

वह बालक जो पहले भी वहां आया था। उसने तुरंत बोला आप मुझे खा लों। मेरे दोस्तो को जाने दो, इन्हें मै अपने साथ लाया था। मुझे माफ कर दो। मैं आपकी इच्छा के बिना आपके बगीचे का फल तोड़ खाया हूं।

वह व्यक्ति हंसने लगा और बोला मैं तुम्हें जानता हूं। तुम पहले भी मेरे बगीचे में आए हो। वह बालक हक्का-बक्का होकर देखने लगा।
तुम लोग फल खा कर वापस चले जाना पर पेड़ों को नुकसान नही पहुंचाना।

बच्चें खुश हो गये और फल हाथ में लेकर बगीचे से अपने-अपने घर चले गए।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि मनुष्य की इच्छा कभी समाप्त नही होती।

Also Read-

बौने और दर्जी | Premchand Ki Kahani in Hindi

बहुत पहले की बात है एक एक गांव में एक दर्जी रहता था। वह अपनी सिलाई के लिए बहुत प्रसिद्ध था। बाजार में सबसे ज्यादा उसकी मांग थी फिर एक समय आया की उसके ग्राहक कम होने लगे। लोग उसके यहां अपने सिलाई व कपड़े के डिजाइनों को पुराना फैंशन का कहना शुरू कर दिया था।

दर्जी के पास धीरे-धीरे काम कम आने लगा। दर्जी के गरीबी के दिन आने लगे।
दर्जी की बीबी ने पूछा- क्या हो गया है तुम्हें सारे ग्राहक भाग क्यों गए। तुम नया डिजाइन क्यों नही बनाते हो जो तुम्हारे ग्राहक को पसंद हो?

दर्जी ने जवाब दिया मेरे पास अब तो पैसे भी नही की मैं कपड़ा लाकर कोई नई डिजाईन बना सकूं।

मेरे पास जितना कपड़ा है बस, उससे एक जैकेट बन सकता है। शाम को दर्जी ने उस कपड़े से जैकेट का कपड़ा काट रख दिया। उसने सोचा कल उसे इसकी सिलाई करेगा।

दूसरे दिन नाश्ता करने के बाद दर्जी ने जब सिलाई के लिए कपड़ा उठाया तो वह देखता है कि जैकेट की बहुत बढ़िया सिल की गयी थी और जैकेट भी बहुत सुंदर लग रहा था।

दर्जी खुशी के मारे अपनी बीवी का माथा चुम लिया और बोला तुमने बहुत सुंदर जैकेट बनाई हो।

दर्जी की बीबी चौंक कर बोली – मेरी समझ में कुछ नही आ रहा, तुम क्या बोल रहे हो?

मुझे सिलाई करना नही आती और ना तो मेने कोई जैकेट सिली है।
दर्जी चकित था- तो रात को जैकेट कौन सिल गया?

वह दोनों बातें कर रहे थे कि किसी ने दरवाजा खटखटाया।

वह एक ग्राहक था जिसे एक जैकेट की आवश्यकता थी। जैकेट देखते ही उसे पसंद आ गयी और जब उसने उसे पहनकर देखा तो वह एक दम उसके नाप का था। ग्राहक खुश होकर जैकेट के अच्छे पैसे दे गया।

दोनों अभी खुश हुए ही थे कि ग्राहक थोड़ी देर में वापस दर्जी के घर आ गया। दर्जी और उसकी बीवी उसे देख परेशान हो गए।
ग्राहक ने बोला, “अरे भाई मैं तुम्हें दो और जैकेट बनाने को बोलने आया हूं आप परेशान ना हो। दर्जी खुश हो गया और बोला कल तक मिल जाएगा।

दर्जी बाजार गया और दो जैकेट के कपड़े ले आया और उसकी कटाई करके रख दिया। अगली सुबह दोनों जैकेट फिर सिलाई की हुई थी।

दर्जी के जैकेट की प्रशंसा सुन पांच लोग दर्जी के पास आए और उन्होंने भी जैकेट बनाने के लिए कहा।

दर्जी को मुंह मांगे दाम मिल रहे थे। दर्जी के मन में यही बात चल रही थी आखिर कौन है जो मेरी मदद कर रहा है?

दर्जी ने पांच जैकेट काट कर रख दिया। उस रात उसकी बीवी भी देखना चाहती थी कि आखिर कौन उनकी मदद कर रहा है।
वह उस रात अपने बिस्तर पर जाकर नही सोए। सिलाई वाले कमरे के परदों के पीछे छिपकर खड़े हो गए।

आधी रात का समय होगा। न जाने कहां से कमरे में पांच बौनों ने आए। पहले तो वे एक दूसरे का हाथ पकड़कर गोलाई में नाचे। फिर वे बैठ, जैकेट की सिलाई करने लगे।

सिलाई खत्म कर जब वे जाने लगे तो दोनों परदें के पीछे से निकल दर्जी और उसकी पत्नी उसके सामने आ गए। उनको दोनों हाथ जोरकर उन सब को साथ देने के लिए धन्यवाद देते है।

दर्जी बोलता है- मैं आपलोगों के लिए क्या कर सकता हूं?

बौने बोले- तुम्हें मेरी जरूरत थी तो हमलोगों ने तुमसे बिना पूछे ही तुम्हारी मदद की। इसी प्रकार जब तुम्हें लगें किसी को मदद की जरूरत है तो तुम भी उनकी मदद करना।

कभी किसी की मदद जताकर नही किया जाता। मदद का मतलब ऐसा होना चाहिए कि दांऐ हाथ से किए मदद बांए हाथ को मालूम ना चले।

यह भी पढ़ें-

Spread the love

हम लाते हैं मजदूरों से जुड़ी खबर और अहम जानकारियां? - WorkerVoice.in 

Leave a Comment

error: Content is protected !!