एक अच्छी कहानी हमारे जीवन में अमित छाप छोड़ जाती है. आज एक ऐसे ही कहानी Positive story in hindi पढ़िए और अपने बच्चे को सुनाये ताकि वो अपने जीवन में सच्चाई और ईमानदारी का महत्व जानकर अपनाये.
ईमानदारी का इनाम | Positive story in hindi
एक था लकड़हाड़ा. उस लकड़हाड़े का नाम रूपराम था. रूपराम बहुत ही गरीब था. दिन-भर जंगल में सुखी लकड़ियां काटता और शाम को उनका गट्टर बनता और बाजार में जाकर उनको बेच देता. लकड़ी बेचने पर जो पैसे मिलते उससे आटा-दाल, नमक, मसाला आदि खरीदकर घर वापस आ जाता. रूपराम को अपने परिश्रम से पूरा संतोष था.
रूपराम गरीब तो था ही, पर ईमानदार बहुत था. एक दिन वह जंगल में लकड़ी काटने गया. नदी के किनारे एक वृक्ष पर चढ़कर लकड़ी कटाने लगा. लकड़ी काटते समय उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई.
रूपराम पेड़ से उतर आया. नदी के पानी में डुबकियां लगाकर उसने अपनी कुल्हाड़ी ढूंढी मगर उसकी कुल्हाड़ी नहीं मिली. वह दुखी हो, अपना दोनों हाथ से सिर पकड़कर नदी के किनारे बैठ गया. कुल्हाड़ी नहीं मिलने पर उसके आखों से आंसू बहने लगे. उसके पास न तो दूसरी कुल्हाड़ी थी और न ही खरीदने के पैसे. उसे यह चिंता सताने लगी कि कुल्हाड़ी के बिना अब परिवार का पालन कैसे करेगा?
उसी नदी में एक जल देवता रहते थे. उसने रूपराम को इस तरह से दुखी देखकर रूपराम से पूछा- भाई रूपराम, तुम क्यों रो रहे हो?
रूपराम ने उन्हें प्रणाम किया. फिर बोलै -“मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई है. कुल्हाड़ी के बिना लकड़ियां नहीं काटी जा सकती है और लकड़ियां काटे बिना मेरे परिवार को रोटी नहीं मिलेगा. ऐसी दुःख से दुखी होकर मैं रो रहा हूं.
देवता बोलें- “रोओ मत, मैं नदी से तुम्हारी कुल्हाड़ी ढूंढ कर ला देता हूं.”
यह कहकर देवता ने नदी में डुबकी लगाई. जब डुबकी लगाकर वे पानी में खड़े हुए तो उनके हाथ में एक सोने की कुल्हाड़ी थी. उन्होंने रूपराम से कहा- “लो अपनी कुल्हाड़ी.”
रूपराम ने उस सोने की कुल्हाड़ी देखकर कहा -“भगवन यह तो सोने की कुल्हाड़ी है. मैं कोई धनी आदमी नहीं हूं कि सोने की कुल्हाड़ी से लकड़ी काटूं. यह तो किसी धनी आदमी की कुल्हाड़ी लगती है.”
देवता ने उस कुल्हाड़ी को लेकर फिर से डुबकी लगा दी. इस बार उनके हाथ में चांदी की कुल्हाड़ी थी. उन्होंने रूपराम से कहा – “लो, यह होगी तुम्हारी कुल्हाड़ी.”
इसपर रूपराम बोला- “शायद मेरे भाग्य में खोट है जो मेरी कुल्हाड़ी नहीं मिल रही. महाराज, आपके हाथ में जो कुल्हाड़ी है वह चांदी की है. यह मेरी नहीं है. वह तो साधारण लोहे की कुल्हाड़ी है. आपने मेरे लिए इतना कष्ट उठाया, पर मेरी कुल्हाड़ी नहीं मिली.”
अब देवता ने तीसरी बार डुबकी लगाईं. अबकी बार वो रूपराम की लोहे की कुल्हाड़ी ले आए. उस कुल्हाड़ी को देखकर रूपराम के उदास चेहरे पर प्रसन्नता की आभा चमकने लगी. प्रसन्नता के साथ देवता को धन्यवाद देते हुए उसने अपनी कुल्हाड़ी ले ली.
देवता रूपराम के सच्चाई और ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुए. वे सोने और चांदी की कुल्हाड़ी भी ले आये. उन्होंने रूपराम से कहा- ” मैं तुम्हारी सच्चाई और ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हूं. तुम ये दोनों कुल्हाड़ी ले जाओ.”
सोने और चांदी की कुल्हाड़ी पाकर रूपराम धनी हो गया. अब उसने लकड़ी काटना छोड़ दिया.
रूपराम के पड़ोसी ने उससे पूछा- “अब तुम लकड़ी काटने क्यों नहीं जाते?”
रूपराम में चल तो था नहीं. सीधे स्वभाव के कारण उसने पड़ोसी को सब सच बात सच-सच बता दी.
उसके पडोसी के मन में यह बात सुनकर लोग पैदा हो गया. दूसरे ही दिन वह कुल्हाड़ी लेकर उसी स्थान पर लकड़ी काटने गया और पेड़ पर चढ़कर लकड़ी काटने लगा. उसने जान बूझकर अपनी कुल्हाड़ी नदी में गिरा दी. फिर पेड़ के नीचे उतारकर रोने लगा.
जल देवता रूपराम के पड़ोसी को दंड देने के लिए प्रकट हुए. पडोसी से बात करके उन्होंने नदी में डुबकी लगाई और सोने की कुल्हाड़ी ले आए.
सोने की कुल्हाड़ी देखते ही पड़ोसी चिल्लाया – “यही है मेरी कुल्हाड़ी.”
इस पर जल देवता बोले- “तुम झूठ बोलते हो. यह तुम्हारी कुल्हाड़ी नहीं है.” देवता ने कुल्हाड़ी पानी में फेंक दी और अदृश्य हो गए. लोभ में पड़ जाने के करना झूठ बोलने से उस पड़ोसी को अपनी कुल्हाड़ी से भी हाथ धोना पड़ा. वह रोता-पछताता हुआ घर लौट आया.
मुर्ख मेढक: अति का अंत | सकारात्मक हिंदी कहानी
एक जंगल था. उस जंगल में एक तालाब था. तालाब में बहुत से मेढक रहते थे. एक बार गर्मी के मौसम में बहुत गर्मी पड़ी. जिसके कारण जिस तालाब में मेढक रहते थे वह सूखने लगा. मेढकों में के मेढक जो सबसे बड़ा था. उनकी डील-डौल भी बहुत आकर की थी. उस मोटे मेढक ने सभी मेढकों की इकट्ठा करके कहा-” भाइयों. गर्मी कितनी अधिक पड़ रही है, तुम्हे तो पता ही हैं.”
मेढकों ने कहा कि “दादा, गर्मियों के मारे डैम निकला जा रहा है.”
मोटा मेढक बोला- “गर्मी पड़ रही है और वर्षा हो नहीं रही. कुछ दिनों में यह तालाब बिलकुल ही सुख जायेगा. पानी नहीं होगा तो हम जिन्दा नहीं बचेंगे.”
मेढक बोले- “दादा, आप हम सबसे बड़े हैं. हमारे प्राण बचाने का कोई उपाय सोचिये.”
मोटे मेढक ने एक पत्थर पर खड़े होकर कहा- “भाइयों, यहां से कुछ ही दुरी पर समुद्र है. वह समुद्र तुमने नहीं देखा मगर मैंने देखा है. समुद्र का पानी कभी कम नहीं होता. चलो, हम यहीं चलते हैं.”
एक छोटे से मेढक से पूछा- ” दादा समुद्र कितना बड़ा होता है?”
मोटा मेढक अपना पेट फुलाकर बोला- “समुद्र इससे भी बड़ा होता है”
सब मेढक बोलें- ” इससे भी बड़ा होता है, यह तो ठीक है, पर वह होता कितना बड़ा है?”
मोटा मेढक पेट फूलता गया और कहता गया- “इससे भी बड़ा”, अंत में उसका पेट गुब्बारे की तरह फूल गया और फट गया. मेढक अपनी मूर्खता पर मर गया.
इसलिए कहा गया है दोस्तों, कि किसी भी बात की अति नहीं करनी चाहिए. किसी भी चीज की अति हमें ठीक उसी तरह ले डूबती है, जिस तरह मोटे मेढक को.
यह भी पढ़ें-