Panchtantra Story in hindi with Moral : सुनहरी चिड़िया और सुनहरे हंस – कुछ वर्ष पहले की बात है। राजस्थान में एक शक्तिशाली राजा राज्य करता था। उस समय झीलों के बीच में उसका एक बहुत ही सुंदर महल था। उन झीलों में ही राजमहल के चारों ओर एक बेहद सुंदर बाग भी था।
झील में बहुत से सुनहरे हंस रहते थे। हंस रोजाना एक पंख गिराया करते थे। राजा उन सभी पंखों को एकत्र करवाता और राजकोष में जमा करवा देता था।
एक दिन एक बड़ी सी सुनहरी चिड़िया उड़ती हुई उस झील तक आ पहुंची और झील के किनारे एक पेड़ की डाल पर बैठ चहचहाने लगी। झील का स्वच्छ और निर्मल पानी पेड़ पौधे देख उसने वहां डेरा डालने की सोची। लेकिन हंसों से उस चिड़िया की मौजूदगी बर्दाशत न हुई।
हंसो ने एक साथ में पूछा में तुम कौन हो? यहां क्यों आई हो?
चिड़िया कुछ भी बोल पाती उससे पहले ही हंसों ने कहा अच्छा होगा तुम यहां से चली जाओं, वरना हम सब तुम्हें मार डालेंगे।
सुनहरी चिड़िया बोली क्यों? क्या यह झील राजा के इलाके में नहीं आती है?
हंसों ने उत्तर दिया- जरूर आती थी। पर हमने यह स्थान राजा से खरीद लिया है। हमारी आज्ञा के बिना राजा भी यहां नहीं आते है। बात आई समझ में ! अब तुम यहां से चलती बनों।
बेचारी चिड़िया का मन उदास हो गया। वह वहां से उड़कर बगीचे के एक पेड़ पर आ बैठी और राजा के इंतजार करने लगी। बाग में राजा हर रोज टहलने आया करता था।
राजा को देखते ही सुनहरी चिड़िया उड़कर उसके पास गयी और बोली, महाराज मैं दूर देश से उड़कर आपकी इस सुंदर राजधानी में आई हूं। मैं आपके राज्य में रहना चाहती हूं। लेकिन महल के पास झील में रहने वाले हंसों ने मुझें वहां से भगा दिया।
और साथ ही मुझें मार डालने की धमकी भी दिया है। उनका कहना है, कि वह झील उन्होंने आपसे खरीद ली हैं।
सुनहरी चिड़िया की बात सुनते ही, राजा के गुस्से की सीमा न रही उन्होने तुरंत सैनिकों को आदेश दिया कि उन सभी हंसो का वध कर दिया जाए। उनकी हिम्मत कैसे हुई मेरे बारे में ऐसा कहने की।
राजा का आदेश पाते ही सैनिक झील की ओर चल पड़े।
एक हंस ने जब सैनिकों को नंगी तलवारें हाथ में लिए आते देखा तो वह तुरंत सारा माजरा समझ गया। उनसे सभी हंसों को दूर से ही आवाज लगा कर कहा। भागों-भागों राजा के सैनिक हाथ में तलवार लिए हमारी तरफ हमें मारने को आ रहे है।
कुछ हंसों ने सोचा सैनिक तो रोज आते है हमारे पंख एकत्र करने, पर वह हंस फिर बोला अरे पर वह हाथ में नंगी तलवार लेकर नही आते है। सैनिको के पहुंचने से पहले सभी हंस आकाश में उड़ गए।
इघर राजा के मन में विचार आने लगा। क्यों में एक अजनबी की बात सुनकर अपने सुनहरे हंसों को मारने की आज्ञा दी। अब उसे रोजाना सोने के पंख कैसे मिल पाएंगे। उनके बुरे स्वभाव के कारण सुनहरे हंस झील को छोड़कर चले गए। यह बात कर के भी उन्हें समझाया जा सकता था।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी अपने उपर इतना घमंड नही करना चाहिए कि जो बात हम बातचीत से भी सुलझा सकते है उसके लिए तलवार की आवश्यकता नहीं होती।
लालची बूढ़ा सारस | panchatantra story for class 3
एक बूढ़ा सारस किसी नदी के किनारे रहता था। वह सारस इतना बूढ़ा हो चुका था कि उसे अपने लिए पेट भर भोजन भी जुटा पाना मुश्किल हो गया था।
मछली उसके अगल-बगल से तैर कर निकल जाती वह उसे पकड़ कर खा भी नही पा रहा था। इस वजह से वह धीरे-धीरे और कमजोर हो गया था।
एक दिन सारस अपनी लाचारी पर निराश होकर नदी के किनारे बैठा रो रहा था। तभी एक केकड़ा वहां से गुजर रहा था। सारस को रोता देख केकड़े ने उससे रोने की वजह पूछा।
तभी अचानक सारस के दिमाग में एक विचार आया। सारस ने ऐसा नाटक किया और बोला शायद तुम्हें नही मालूम इस नदी में रहने वाले प्राणीयों पर कैसी परेशानी आने वाली है।
केकड़ा ने बोला मुझे नही मालूम कुछ भी क्या होने वाला है?
सारस ने बोला मुझे एक ज्योतिषी ने बताया है कि जल्द ही इस नदी का पानी सूखने वाला है। इसमें रहने वाले सभी जन्तु मारे जायेंगे।
यहां से कुछ ही दूरी पर एक झील है। बड़े प्राणी जैसे- मगर, कछुए व मेढ़क इत्यादी तो खुद ही चलकर वहां पहुंच सकते है। लेकिन मुझे मछलियों जैसे उन जीवों की चिन्ता है जो बिना पानी के तो वे मर जाएगें। यही कारण मैं उदास और दुःखी हूं, मैं उनकी सहायता करना चाहता हूं।
यह सुन कर पानी के कुछ और जीव सन्न रह गए। पर उन्हें खुशी थी की सारस उनके लिए परेशान है।
सरस ने बोला मैं एक बार तो नहीं पर धीरे-धीरे कुछ जीवों को अपनी पीठ पर बैठा उनको उस झील तक छोड़ सकता हूं। पर मालूम नही मैं अकेला इस काम को कर पाउंगा या नहीं?
सभी जीव सारस की बात को मान, अपनी जान बचाने के लिए उसकी पीठ पर सवार होने के लिए आपस में ही लड़ने लगे।
सारस ने बोला मैं बहुत कमजोर हूं। ऐसा करो पहले सभी अपने बच्चों को भेजेगे। उसके बाद मैं तुम लोगों को धीरे-धीरे उनके पास ले जाउंगा।
सभी ने सारस के कहे अनुसार प्रतिदिन अपने बच्चो को सारस की पीठ पर बैठा देते। सारस की कुटिल योजना काम कर रही थी। वह प्रतिदिन मछलियों को अपनी पीठ पर लादकर उन्हें झील के बजाय एक पहाड़ी के पीछे लेजाकर उन्हें मारकर खा लिया करता।
इस प्रकार प्रतिदिन मछलियों को खाकर सारस हट्टा-खट्टा हो गया। एक दिन केकड़े ने सारस को बोला मित्र लगता है तुम मुझे भूल चुके हो। मै सोचता था जान बचाने के लिए तुम मुझे यहां से सबसे पहले उस झील तक ले जाओगें। पर तुम तो मेरे लिए कुछ सोच ही नही रहे मेरा नम्बर कब आएगा।
सारस ने बोला तुम नाराज मत हो आओ आज मैं तुम्हें उस झील तक ले जाता हूं तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओं।
केकड़ा बहुत प्रसन्न हो गया और सारस की पीठ पर बैठ गया। सारस भी उसे झील की ओर लेकर उड़ चला।
काफी देर उड़ने तक उड़ने के बाद केकड़े को कही दूर-दूर तक कोई नदी या झील नही दिख रही थी। केकडे़ ने सारस को कहां मुर्ख प्राणी! तुम क्या समझते हो मैं क्या तुम्हारा नौकर हूं। यहां कोई दूसरी झील नही मैं तुम लोगो को अपनी बातों में उल्झाकर अपने दिमांग से बिना मेहनत आराम से भोजन लेकर वहां पहाड़ी के पीछे खाकर आराम किया करता था। यह बोल कर सारस हंसने लगा।
केकड़े ने तभी अपना पंजा सारस के गरदन पर रखा और उसे नदी वापस लोटने को कहा नही तो वह सारस का गरदन तोड़ देगा। सारस को मजबूर होकर वापस नदी की ओर लोटना पड़ा।
नदी के किनारे पहुंचते ही केकड़ा सारस की पीठ से कूद कर पानी में भाग गया और सभी प्राणी को केकड़े ने सारस की असलीयत बताई। सभी यह बात सुनकर सारस पर गुस्सा कर रहे थे।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है। कभी भी किसी की बातों में जल्दी नही आना चाहिए जिसे आप नही जानते वह आपकी फायदे की बातें कर रहा है तो सोचना चाहिए उसे क्या फायदा होने वाला है। यूंही कोई किसी का भला नही करता जब तक उसको आपसे कोई फायदा ना मिल रहा हो तभी तो बड़े- बुजुर्ग कह गए है। लालच बुरी बला हैै।
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