बड़ों की सीख | Learn the elders | Motivational Stories for Kids
बच्चों को छोड़कर शेर-शेरनी जंगल में गए हुए थे. बड़े बच्चे ने छोटे से कहा- “चलो झरने के पास चलते हैं. वहां पानी भी पी लेंगे और जंगल में थोड़ा-सा घूम-फिर भी लेंगे. अगर रास्ते में कोई हिरण-वीरन देखा गया तो उसे डराने का भी आनंद ले लेंगे”.
छोटे बच्चे ने इसका विरोध किया. वह बोला, “पिताजी की आज्ञा है कि गुफा से अकेले मत निकलना. झरने के पास जाने के लिए भी उन्होंने विशेष रूप से मना किया है. तुम रुक जाओ. अभी मां या पिताजी कोई आ ही जायेंगे”.
इसपर बड़ा बच्चा बोला, “भई, मुझे तो प्यास लगी है. अरे, हम शेर के बच्चे हैं. जंगल के सही पशु हमसे डरते हैं. फिर हमें किस बात का डर?” पर छोटा बच्चा जाने को तैयार नहीं हुआ. उसने कहा- “मैं तो मां-बाप की बात मानूंगा और गुफा से बाहर नहीं जायूंगा.” अकेला जाने ने मुझे डर लगता है.
बड़ा भाई बोला- “तुम डरपोक हो. नहीं चलते तो मत चलो. मैं तो जाता हूं”. बड़ा बच्चा गुफा से बाहर निकल झरने के पास चला गया. उसने भरपेट पानी पिया और हिरनों की खोज में इधर-उधर घूमने लगा.
उस दिन उस जंगल में कुछ शिकारी आए थे. उन्होंने दूर से ही शेर के बच्चे को अकेले घूमते हुए देख लिया. फिर उन्होंने सोचा कि इस शेर के बच्चे को पकड़कर किसी चिड़िया घर में बेच देंगे और वहां से पैसा प्राप्त कर लेंगे.
इसलिए उन लोगों ने छिप-छिपकर शेर के उस बच्चे को चारो तरफ से घेर लिया. इसकी तनिक भी भनक उस नन्हे से शेर के बच्चे को लगने दी. शिकारियों ने कम्बल और कपडे की सहायता से उस शेर के बच्चे को पकड़ लिया.
वह बच्चा अभी कुत्ता के बराबर नहीं हुआ था. इसलिए वह काफी आसानी से पकड़ में आ गया. वह बेचारा चिल्ला भी नहीं पाया. शिकारियों ने कम्बल में लपेटकर रस्सी से बांध दिया. इसके बाद वह न तो गुर्रा सकता था और न ही छटपटा सकता था.
जैसा कि शिकारियों का विचार था, उन्होंने उस बच्चे को चिड़ियाघर में बेच दिया. वहां उसको एक कठघरे में बंद कर दिया.
इस स्थिति में पहुंचकर उसे काफी कष्ट हो रहा था. उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मां-बाप का कहना न मानने का इतना बड़ा सजा भोगना पड़ेगा. उसे उनकी सीख याद आ रही थी. वह खीझकर गुर्राता था और गुस्से में कठगरे की छड़ों को नोचता था. मगर इससे क्या हो सकता था.? छड़े टूट तो सकती नहीं थी.
जब भी वह किसी छोटे बालक को देखता तो, बहुत गुर्राता और उछलता था. गुर्रा और उछलकर वह अपनी भाषा में कहता था, “मां-बाप तथा बड़े की शिक्षा पर अमल अवश्य करना. अपने से बड़ों की आज्ञा न मानने से तुम्हें मेरी तरह पछताना पड़ेगा. मैंने बड़ों की आज्ञा नहीं मानी, इसलिए इस कठघरे में बंद होना पड़ा.”
इसलिए कहा गया है दोस्त कि हमेशा अपने बड़े-बुजुर्गों का कहना मानना चाहिए. वह हमारे भले के लिए ही कहते हैं. जो बड़ों का कहना नहीं मनाता वह इसी शेर की तरह हानि उठता है.
कुछ कष्ट झेल लेने से व्यक्ति का जीवन बन जाता है Hindi Story
बहुत समय पहले की बात है. एक बार एक शिल्पकार गांव के पास से गुजर रहा था. उसी दौरान थका- माँदा शिल्पकार लंबी यात्रा के बाद किसी छायादार वृक्ष के नीचे विश्राम के लिये बैठ गया.
थोड़ा आराम के बाद अचानक उसे सामने एक पत्थर का टुकड़ा पड़ा दिखाई दिया. उस शिल्पकार ने उस सुंदर पत्थर के टुकड़े को उठा लिया. अपने सामने रखे अपने औजारों को थैले से निकल लिया और छेनी-हथौड़ी से उसे तराशने के लिए जैसे ही पहली चोट की, पत्थर जोर से चिल्ला पड़ा:- “उफ मुझे मत मारो.”
दूसरी बार वह रोने लगा:- “मत मारो मुझे, मत मारो… मत मारो”
शिल्पकार ने उस पत्थर को छोड़ दिया और अपनी पसंद का एक अन्य टुकड़ा उठाया और उसे हथौड़ी से तराशने लगा.
वह टुकड़ा चुपचाप छेनी-हथौड़ी के वार सहता गया और देखते ही देखते उस पत्थर के टुकड़े मे से एक देवी की प्रतिमा उभर आई.
इसके बाद उस प्रतिमा को वहीं पेड़ के नीचे रख वह शिल्पकार अपनी राह पकड़ आगे चला गया.
कुछ वर्षों बाद उस शिल्पकार को फिर से उसी पुराने रास्ते से गुजरना पड़ा, जहाँ पिछली बार विश्राम किया था. उस स्थान पर पहुँचा तो देखा कि वहाँ उस मूर्ती की पूजा अर्चना हो रही है, जो उसने बनाई थी.
भीड़ है, भजन आरती हो रही है, भक्तों की पंक्तियाँ लगीं हैं, जब उसके दर्शन का समय आया, तो पास आकर देखा कि उसकी बनाई मूर्ती का कितना सत्कार हो रहा है.
जो पत्थर का पहला टुकड़ा उसने उसके रोने चिल्लाने पर फेंक दिया था वह भी एक ओर में पड़ा है और लोग उसके सिर पर नारियल फोड़कर मूर्ती पर चढ़ा रहे है.
इसके बाद शिल्पकार ने मन ही मन सोचा कि-
“जीवन में कुछ बन पाने के लिए यदि शुरु में अपने जीवन के शिल्पकार (माता-पिता, शिक्षक, गुरु आदि) को पहचानकर, उनका सत्कार कर, कुछ कष्ट झेल लेने से व्यक्ति का जीवन बन जाता है, और बाद में सारा विश्व उसका सत्कार करता है, लेकिन जो डर जाते हैं और बचकर भागना चाहते हैं वे बाद में जीवन भर कष्ट झेलते हैं.
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