किसी भी बच्चे के जीवन निर्माण में प्रेरणादायक कहानियों का बहुत ही महत्त्व हैं. उनको हम अच्छी व सकारात्मक कहानियों के द्वारा अच्छी सिख दे सकते हैं। जिसके लिए हम आज बेस्ट मोरल स्टोरी इन हिंदी (Moral story in hindi for class 6) शेयर कर रहे हैं।
जो कुछ करो, सोचकर करो | Moral story in hindi for class 6
किसी गांव में एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत हि विद्वान था। वह अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसका एक पुत्र भी था। पुत्र अत्यंत सदाचारी और गुणवान था। उसकी बुद्धि इतनी तीव्र थी कि ब्राह्मण उसे जो कुछ भी पढ़ाता था, वह तुरंत समझ लेता था और उसे कभी भूलता नहीं था।
पुत्र की कुशाग्र बुद्धि से ब्राह्मण मन-ही-मन प्रसन्न रहता था। पर ऊपरी मन से उसे सदा डाँटता-फटकारता भी रहता था। कभी भी उसने अपने मुँह से पुत्र की प्रशंसा नहीं की थी।
वर्ष पर वर्ष बीतते गए और ब्राह्मण एवं वह ब्राह्मण पुत्र शिक्षा की ऊँचाईयों की ओर बढ़ने लगा और एक दिन पढ़-लिखकर बहुत बड़ा विद्वान बन गया। देश-विदेश में उसकी विद्वता का यश फैल गया। लोग उसे पूरे देश का सर्वोत्तम विद्वान मानने लगे।
बालक की इतनी प्रतिष्ठा हो जाने पर भी पिता का स्वभाव थोड़ा भी नहीं बदला। वह अब भी पुत्र की तनिक भूल पर भी उसे डाँट-फटकार सुना देता था।
पुत्र पढ़-लिखकर विद्वान बना तो उसका विवाह हो गया। मान-सम्मान की तो वह मंजिले तय कर ही चुका था। देश के महान विद्वानों की गणना में सबसे पहले उसी का नाम लिखा जाता था।
पुत्र अपनी ख्याति से तो प्रसन्न था पर उसे इस बात का बड़ा दुःख था कि उसके पिता कभी भी उसकी प्रशंसा कभी नहीं करते थे। यह बात तो उसे बहुत बुरी लगती थी। वह सोचता-’चलो, पिताजी मेरी प्रशंसा नहीं करते तो न सही, पर बात-बेबात डाँटकर झिड़क देते हैं, यह अच्छी बात नहीं।’
इसी क्रम में एक दिन किसी बात पर पुत्र की पत्नी के सामने उसे भला-बुरा कह डाला। पुत्र इससे आहत हो गया। उसने सोचा-‘पिताजी को मेरे सम्मान और यश से जलन होती है।’
इस प्रकार सोचते-विचारते उसने अपने पिता की हत्या करने का निर्णय कर लिया- ‘न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।’
आश्विन मास की शरत्पूर्णिमा की रात थी। चंद्रमा पूरे आकाश में विराजमान था और उसकी शीतलता सौंदर्यमयी चाँदनी धरती पर फैली हुई थी। आँधी रात बीती तो ब्राह्मण पुत्र उठा और तलवार लेकर पिता की हत्या करने के लिए उनके कमरे की ओर चल पड़ा वहाँ पहुँचा तो ज्ञात हुआ कि माता-पिता अभी जाग रहे हैं और उनमें परस्पर वार्तालाप हो रहा है। वह चुपचाप दरवाजे से कान लगाकर उनकी बातें सुनने लगा।
माँ कह रही थी- ‘‘देखो, आज चंद्रमा कितना प्यारा लग रहा हैं उसका प्रकाश चारों ओर फैलकर अमृत-वर्षा कर रहा है। बताओं तो इस चंद्रमा की उज्जवल कीर्ति की कोई समानता कर सकता हैं।’’
पिता बोले-‘‘क्यों नहीं? तुम अपने पुत्र को ही ले लो। उसकी कीर्ति का प्रकाश चारों ओर फैल रहा है। उसका मधुर व्यवहार सबको अमृत जैसा लगता हैं। चंद्रमा में तो दाग भी है, पर हमारे पुत्र में पूर्ण रूप से परिपूर्ण है।
यह सुनकर माँ आश्चर्य से ब्राह्मण का मुँह ताकती रह गई। बोली-‘‘फिर तुम उसकी प्रशंसा करने से क्यों कतराते हो? उसे जब-तब डाँटते क्यों रहते हो?’’
पिता ने मुस्कुराकर कहा-‘‘इसलिए कि उसे अपनी विद्वता और सदाचरण का अभिमान न हो जाए और उसको किसी की नजर न लग जाए।’’
माता-पिता की इस बात को सुनकर पुत्र हैरान रह गया। उसे अपनी सोच पर बहुत पश्चाताप हुआ। अपने मन में उसने कहा- ओह! मैंने क्या सोचा था। मैं कितना जघन्य अपराध करने जा रहा था। पिता की हत्या! धिक्कार है मुझे।’
ब्राह्मण-पुत्र अपने कमरे में वापस लौट आया और बिस्तर पर पड़ रहा। अपने घृणित विचार के कारण उसको चैन नहीं पड़ रहा था। उसी बेचैनी में वह मंदिर में गया और भगवान की मूर्ति के चरणों में नाक रगड़ने लगा।
भगवान से उसने प्रार्थना की-‘‘ भगवान्! मेरी बुद्धि एवं विचारों को मांफ कर दीजिए। में कितना बड़ा पाप करने जा रहा था। भगवान मुझे वरदान दीजिए कि मैं जीवन-भर मात-पिता की सेवा करता रहूँ। चाहे मैं स्वयं दुःखी रह लूँ पर इन्हें सदा सुखी रखूँ।’’
मंदिर में प्रार्थना करके पुत्र घर लौट आया। तब तक सुबह हो चुका था। वह सीधे अपने पिता के कमरे में गया। पिता के चरणों में उसने अपना सिर रख दिया। फिर अपने घृणित निर्णय के बारे में अपने अपराध की क्षमा माँगी।
पिता ने पुत्र के पछतावे पर उसे बहुत प्यार किया और उसे माँफ कर दिया।
धूर्त की बातों में नहीं आना चाहिए
एक मुर्गा एक पेड़ के नीचे बिखरा हुआ दाना चुग रहा था. तभी दूर से एक लोमड़ी की निगाह उसपर पड़ी. मोटे-ताजे मुर्गे को देख लोमड़ी के मुंह में पानी आ गया. उसकी प्रबल इच्छा हुई कि किसी तरह वह मुर्गे को खा ले. वह धीरे-धीरे मुर्गे के तरफ बढ़ने लगी.
मुर्गे ने जब लोमड़ी को अपनी ओर आता देखा तो उड़कर पेड़ की डाल पर बैठ गया. लोमड़ी पेड़ के नीचे आई और ऊपर मुर्गे की और मुंह करके बोली- मुर्गा भैया. आप क्या मेरे डर से ऊपर बैठ गए हो? मुर्गे ने बोला- “हां, क्योकि तुम मुझे यहां खाने के लिए ही आई हो”.
लोमड़ी बड़ी ही चालाकी से बोली- “कैसी बातें कर रहे हो भाई, मैं तुम्हे खाने के इच्छा से नहीं आई बल्कि मैं तो तुम्हे एक खुशखबरी सुनना चाहती हूं”. इसपर मुर्गे ने पूछा कि क्या खुशखबरी है? इसपर लोमड़ी बताने लगी कि जंगल में सभी जानवरों ने बैठक करके निर्णय लिया है कि आज से कोई भी जानवर किसी भी जानवर को नहीं मारेगा. तुम निडर होकर नीचे आओ और हम दोनों मिलकर यह खुशखबरी अन्य जानवरों को सुनाने चलते हैं.
मुर्गा बहुत ही चालक था. वह लोमड़ी की चालाकी समझ गया. उसने लोमड़ी से कहा की “लोमड़ी दीदी, सामने देखो तो कुछ शिकारी कुत्ते इधर ही आ रहें हैं. जब तक मैं नीचे आयुं तुम यह खुशखबरी उनको सुनकर मित्रता कर लो”. लोमड़ी यह सुनते ही पसीने से तर हो गई. वह भागती हुई बोली -“मुर्गा भैया, मैं अब चलती हूं, मुझे दूसरे जानवरों को भी खुशखबरी सुननी है. इतना कह कर लोमड़ी नौ-दो-ग्यारह हो गई. वह मुर्गे को नहीं मार सकी.
इसलिए कहा गया है कि कभी भी “धूर्त की बातों में नहीं आना चाहिए”. अगर आपने विवेक से काम नहीं लेंगे तो धूर्त केवल छल ही करेगा. जरुरत है ऐसे लोगों की पहचान करने की और ऐसे लोगों से सावधान रहने की.
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