दोस्तों, पहले Joint Family होने के कारण Children अपने दादा-दादी से Hindi Stories (Best Moral Stories for Childrens) सुनकर सोते थे. मगर अब भाग-दौड़ की जिंदगी में हम अपने Children पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. इस Blog बनाने का मकसद वही है.
Best Moral Stories for Childrens in Hindi
हर रोज मेरी Daughter सोने से पहले Story सुनाने की जिद्द करती है. उसको हर रोज एक Story सुननी ही पड़ती है. अब यही Problem शायद आपलोगों की भी होगी. यह बात बिलकुल सही है कि Story हमारे Life में गहरा प्रभाव डालती है. इसके लिए Childrens के Life में Moral Stories की बहुत बड़ी भूमिका है.
आज हम अपने ब्लॉग HindiChowk.Com के माध्यम से Hindi की Best Moral Stories for Childrens (हिंदी में बच्चों के लिए सवर्श्रेष्ठ नैतिक कहानियां) की Series में अलग-अलग Stories शेयर करे रहे हैं. उम्मीद है, आपको पसंद आयेगी. इसके बारे में कोई भी Suggestion या Complaint हो तो नीचे Comments Box में अवश्य लिखें.
रंगा सियार (Rangsa Siyar) – Best Moral Stories for Childrens in Hindi
एक सियार बहुत भूखा था. वह अपने भोजन के तलाश में जंगल में घूम रहा था. सुबह से भोजन ढूंढते- ढूंढते शाम हो गई मगर उसको खाने के लिए कुछ नहीं मिला. इसके बाद रात होने को चली मगर तब भी वह इधर-उधर भटकता रहा. सियार जब भूख से घबराने लगा तो वह शहर के गलियों में पहुंच गया.
सर्दियों के दिन थे अतः सभी घरों के दरवाजे बंद थे. जिसके कारण सियार आराम से गलियों में भटकने लगा. इसी दौरान गली के कुत्तों ने सियार को देख लिया और उसके पूछे पड़ गए. वह उसको देखकर भौंकते हुए झपट पड़े.
सियार कुत्तों की फ़ौज देखकर भयभीत हो गया. कुत्तों से बचने का उसे कोई उपाय सूझ नहीं रहा था. भागते हुए उनको एक घर का दरवाजा खुला मिला. सियार जल्दी से उस घर में घुस गया.
वह घर एक रंगरेज का था. रंगरेज के घर में सियार ने दो नांद देखी. एक में कपडे भींग रहे थे और दूसरी में नीला रंग घुला हुआ था. नील वाली नांद से कुछ गंध सी आ रही थी.
भूखे सियार ने सोचा- “दूसरी नांद में पेट भरने के लिए कुछ जरूर मिलेगा”. यह सोचकर वह नांद में कूद गया. नांद में कूदते ही उसका सारा शरीर नीला हो गया.
नील रंग का तो सियार को कुछ पता नहीं चला मगर ठण्ड पानी के कारण उसे ठण्ड लगने लगी. वह ठिठुरता हुआ जंगल की ओर भाग लिया. वहां मन मारकर झाड़ियों में लेता रहा.
सवेरे को जब वह नाले पर पानी पीने गया तो नाले के पानी में उसे अपनी सूरत दिखाई पड़ी. उस रंग-रूप को देखकर उसी बड़ी प्रसन्ता हुई.
जंगल के अन्य जानवर भी उसके विचित्र रूप को देखकर भागने लगे. सियार ने सोचा- “यह सब मुझसे डर गए. इसलिए उनपर रौब जमाते हुए कहा, “सुनो जंगल के वासियों, मैं नीलाम्बर हूँ. भगवान् ने मुझे जंगल का राजा बनाकर भेजा है”.
जानवरों ने भी ऐसा जानवर अभी तक नहीं देखा था. इसलिए सियार की बात को सच मानकर उसके आये सिर झुकाया ओर उसे अपना राजा मान लिया.
सियार ने शेर को अपना मंत्री ओर चीते को अपना सेनापति न्युक्त कर दिया. उसने मंत्री बने शेर से कहा- “मैं सियारों से बहुत घृणा करता हूँ. अतः इन सबों को यहां से भगा दो. मैं इनको देखना पसंद नहीं करता.”
शेर ने राजा के आज्ञा का तुरंत ही पालन किया.
शेर ओर चिता ही अन्य जानवरों को मारकर लाते नीलाम्बर महराज मजे से पेट भर का खाते. इस तरह बहुत ही आराम से उनका दिन कट रहा था.
इस दिन की बात है. राजा नीलाम्बर का दरबार लगा हुआ था. गाना-बजाना चल रहा था. तभी कहीं से हुआं-हुआं की आवाज सुनाई दी. यह आवाज सियारों की होती है. अपने भाइयों की आवाज सुनकर उसको भी जोश आ गया ओर वह भूलकर हुआं-हुआं करने लगा.
उसकी इस आवाज को सुनते ही सारे जानवर चौकन्ने हो गए. उसकी पोल खुल गई थी. सभी जानवरों ने उसको पहचान लिया था. क्रोधित होकर शेर ने उसपर झपटा ओर उस धोखेबाज सियार की बोटी-बोटी चबा गया.
इसलिए, दोस्त कहा गया है कि किसी को आप ज्यादा देर तक मुर्ख नहीं बना सकते. एक न एक दिन ढोल की पोल खुले बिना नहीं रहती है.
अपने गुस्से पर काबू | Control your anger | Moral Stories for Childrens in Hindi
एक समय की बात है. रोहित नाम का लड़का था. वह अपने पढाई-लिखाई के आलावा खेल कूद में हमेशा अवल आता था. इसलिए स्कूल में सब अध्यापक उससे बहुत प्रभावित थे और उसकी तारीफ करते थे.
मगर यह क्या, इतना होनहार होने के बावजूद भी सब सहपाठी उससे से नफरत करते थे. यहाँ तक के उसके साथ क्लास में बैठने से भी कतराते थे. स्कूल में लंच के वक़्त कोई भी उसके साथ टिफ़िन नहीं खाता था.
रोहित के सहपाठियों के इस नफरत का कारण उनका गुस्सा था. रोहित को छोटी-छोटी बातों पर झट से गुस्सा आ जाता और उस गुस्से में ना जाने क्या कुछ उल्टा सीधा बोल देता था. अध्यापक के सामने तो बोलने के हिम्मत नहीं थी सो अपना सारा गुस्सा अपने सहपाठिओं पर निकालता था.
अब उसके दोस्त, रोहित का गुस्सा कब तक सहते. इसलिए सभी सहपाठियों ने मिल कर रोहित का बहिष्कार करने का फैसला लिया. इसी कारण अब वो अकेलापन महसूस करने लगा था.
ये सब रोहित के सबसे प्रिय अध्यापक भी समझ चुके थे. उन्हें जब उसकी चिंता होने लगी तो उन्होंने एक दिन छुट्टी के बाद रोहित को रोक लिया. अकेले में उसे समझाया और एक सुझाव दिया. जिसका पालन रोहित को एक महीने तक करना था. उनके सलाह को रोहित मान गया.
उनका सुझाव ये था कि जितनी बार भी रोहित को गुस्सा आए और वह किसी को करवी बात बोले तो उसे अपनी कापी में एक काटा लगाना होगा. रोहित ने ऐसा ही किया. पहले दिन उसने 8 काटे लगाए, दुसरे दिन 9, तीसरे दिन 6 और इस तरह उसने रोज़ अपने गुस्से के अनुसार काटे लगाना शुरू कर दिया.
अब 15 दिन बाद अध्यापक ने जब कापी की जांच की तो देखा कि पहले कुछ दिन छोड़ बाकी दिनों में काटे काम होते जा रहे थे. उन्होंने उसे और अच्छा करने का बढ़ावा दिया और एक नया सुझाव दिया.
सुझाव ये था कि अब जितनी बार भी गुस्सा आने पर रोहित अपने पर काबू कर गुस्सा नहीं करे उस समय एक काटा मिटा दे. रोहित झट से तैयार हो गया.
अब रोहित हमेशा कोशिश करने लगा कि वह गुस्सा ना करे या किसी से कोई बुरी बात ना बोले. जब भी वो अपने पर काबू रखता वो एक काटा मिटा देता.
इस तरह 15 दिन और बीत गए. उन अध्यापक महोदय ने रोहित से उसकी काटों वाली कापी मांगे तो देख हैरान हो गए. रोहित ने सब काटे मिटा दिए थे. खुश हो उन्होंने उसे गले से लगा लिया और कहा कि आगे से अपने गुस्से और जबान पर काबू रखे ताकि उसकी बात या व्यवहार से किसी को बुरा ना लगे.
जब रोहित जाने लगा तो अध्यापक ने उसे फिर से कापी खोलने को कहा. कापी दिखा बोले, ”देखो रोहित, काटे तो सब मिट गए लेकिन मिटाने से कापी कितनी गन्दी हो गयी है. इसी तरह करवा बोल और बुरा व्यवहार भी तुम्हारे रिश्तों को गन्दा कर देता है.” इसलिए कहा गया है कि, “अच्छे बोल और व्यवहार रिश्तों को मधुर और मजबूत बनता है”.
आधी छोड़ सारी गंवाई | हिंदी में बच्चों के लिए सवर्श्रेष्ठ नैतिक कहानियां
एक मछुआरा मछली पकड़ने एक झील पर गया. उसने सुन रखा था कि उस झील पर बहुत-सी मछलियां हैं और वे बहुत बड़ी और भारी है. मछुआरे ने झील के किनारे जाकर मछली पकड़ने की बंसी में नीचे जाल लटकाया कर उसे झील के पानी में लटका दिया.
वह बहुत देर तक प्रतीक्षा करता रहा कि जल्दी ही कोई मछली फंस जायेगी. मगर उसकी यह आशा भी प्रतीक्षा ही रही. चार घंटे बीत चुके थे मगर एक भी मछली नहीं फंसी थी.
मछुआ निराश हो रहा था. समय बीतता जा रहा था. इसी दौरान अचानक उसको लगा कि कोई बड़ी मछली फंस गई है. उसने तुरंत ही पास जाकर बंसी को धीरे-धीरे ऊपर खींचा. एक बहुत ही मोटी सी मछली उसमे फंसी थी.
बंसी में से मछली को निकालकर मछुए ने अपने हाथ में ले लिया. कहने लगा- “घंटो बैठे रहने के बाद एक मछली फंसी. वह भी इतनी छोटी कि जिससे कुछ भला हो”.
मछली बोली – ” मछुए राजा, मुझे घर ले जाने से आपका कुछ भी भला नहीं होगा. इसलिए मुझे छोड़ दो और बंसी को दुबारा झील में डालो. कोई बड़ी मछली आपके हाथ लग सकती है”.
“बड़ी देर में एक मछली मिली है. अब उसे भी छोड़ दूं” मछुए ने कहा. मछली बोली- “मछुआ राजा. तुम मुझे छोड़ दोगे तो मैं किसी बड़ी मछली को भेज दूंगी , यह कहकर की ऊपर झूल के किनारे आटे की सैंकड़ों गोलियां पड़ी है. मैं तो भरपेट खा आई हूं”.
इतना सुनते ही मछुए को लालच आ गया. उसने सोचा- ” यह मछली किसी को अवश्य बहकाकर ऊपर भेज देगी. अगर नहीं भी भेजा तो कोई छोटी बड़ी मछली अवश्य फंस ही जाएगी”.
यह सोचकर मछुआरे ने मछली को छोड़ दिया. उसने मछली को छोड़ते हुए कहा- “उस मछली के साथ तुम्हे भी मैं आटे की गोलियां खाने को दूंगा. झोले में से आटे निकालकर अभी गोलियां बनता हूं”.
मछली झील में कूद गई. मछुआ कभी देर तक प्रतीक्षा करता रहा मगर न तो कोई बड़ी मछली आई और नहीं ही कोई छोटी ही. बड़ी मछली कोई आई नहीं थी और छोटी मछली को उसने स्वंय ही छोड़ दिया था. शाम हो गई थी. मछुआ निराश होकर घर चला गया. छोटी मछली को छोड़कर वह बहुत पछताया. वह मन ही मन सोच रहा था, “आधी छोड़ पूरी को पाए, आधी मिले न पूरी पाए.”