Lockdown ki kahani – लाॅकडाउन में सारा देश बंद पड़ा था। सभी अपने-अपने परिवार के साथ अपने घर में बंद रह रहे थे। कुछ लोग अपनी जिंदगी आराम से बिता रहे थे। पर कुछ परिवारों में खाने के लिए खाना भी नसीब नहीं था। ऐसे ही एक परिवार की कहानी बताने जा रही हूं। जिनके घर का एक सदस्य बाहर लाॅकडाउन में फसा हुआ था।
चारों तरफ अचानक लाॅकडाउन होने से सारे लोगों में उथल पुथल मच गई थी। एक परिवार में चार सदस्य थे रमेश और उसकी पत्नी उमा दो बच्चें शीतल और रोहन थे। रमेश अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहता था।
रमेश का कपड़ों को व्यापार था। वह अक्सर सुरत अपने काम की वजह से सुरत आता-जाता रहता था। रमेश लाॅकडाउन होने के पहले भी सुरत गया हुआ था। और अचानक लगे लाॅकडाउन में वह वही फंस जाता है।
रमेश के दोनों बच्चों में शीतल छोटी थी और रोहन बड़ा, पर शीतल समझदार और दयालू स्वाभाव की थी। रोहन जिद्दी और घमंडी किस्म का था। उसे अपने आस-पास के लोगों से भी कोई लेना-देना नहीं था। रोहन और शीतल में बिल्कुल नही बनती थी। किसी ना किसी बात पर हमेशा झगड़ा हो जाता था।
शीतल ने रोहन से तुने फिर से मेरी सारी किताबे फैला दी इन्हें अभी तो मैंने सजाया था। रोहन तो ठिक हैं फिर से सजा लो इसके अलावा तुम्हारे पास काम ही क्या है।? स्कूल तो जाना नही है। कुछ घर का ही काम कर लिया कर यह बोलकर शीतल के कमरे से रोहन बाहर चला जाता है।
उमा जब किचन में जाती है। तो देखती की रोहन ने किचन से बिस्कीट निकाल कर खाया और बचे हुए बिस्कीट को कुड़े में फैक दिया। उमा इस बात पर रोहन से नाराज होती है। यह तुम क्या कर रहे हो रोहन तुम्हें मालूम हैं ना बाहर लाॅकडाउन चल रहा है। कुछ भी सामान बहुत मुस्कील से मिल रहा है। पर तुम्हें इन सब से क्या तुम्हें तो बस बरवाद करना आता है।
इधर शीतल बालकनी में जैसे ही आती हैं वह नीचे देखती है। लोगों की लम्बी लाईन लगी हैं। शीतल उमा के पास जाकर पूछती है। मां ये सामने वाली चाची के घर लोगों की लाईन क्युं लगी है। बाहर तो लाॅकडाउन है। उमा फिर शीतल को बताती है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जीनके पास खाने को कुछ भी नही तो सामने वाली चाची रोज खाना बनाकर उन लोगों को बांटती है। इसीलिए वहा लम्बी लाईन लगी हुई है।
शीतल बोलती है मां क्या हम भी उन लोगों की मदद कर सकते है। पापा के पास भी तो पैसे है। बोलो ना मां, उमा सोचने लगती है। तभी रोहन बोलता है। शीतल तुम पागल हो गई हो क्या हम अपने पैसों से कुछ भी खरीद कर उन्हें क्यूं दे।
तभी उमा के मोबाइल की घंटी बजती है। फोन पर रमेश था परेशान उमा रमेश से पूछती है। आप कहा है। कब आएगें। रमेश बोलता है। मैं नही आ पाउंगा उमा, मैंने सभी कोर्शीस कर ली। पर जब तक लाॅकडाउन रहेगा सरकार ने किसी को भी एक शहर से दूसरे शहर जाने पर रोक लगा रखा है। तुम सब अपना ख्याल रखना यह कह कर रमेश फोन रख देता हैं।
इधर रोहन की मस्ति बढ़िती जा रही थी। कभी ये बना दो, कभी वो बना दो, आज ये नही खाउंगा इससे उसकी मां बहुत परेशान थी। एक शाम उमा ने जब खाना बनाया तो रोहन अपनी मां पर गुस्सा करते हुए बोला यह क्या आप रोज-रोज एक ही खाना बनाते हो कुछ अच्छा भी बना दिया करो।
धिरे-धिरे 15 दिन बित जाते हैं उमा रमेश के लिए परेशान रहती है। होटल भी बंद है। क्या खाया होगा उन्होंने कुछ खाया भी होगा या नहीं। शीतल भी हमेशा पूछती रहती कब पापा घर आएगें।
शीतल के पापा जब भी फोन करते अपने परेशानीयों के बारे में कभी नहीं बताते। एक दिन की बात है। रोहन ने सारा खाना यह कह कर छोड़ देता है। की उसे खाना बिल्कुल भी अच्छा नही लगा। शीतल बोलती है। रोहन ये क्या तरीका हैं मां से बात करने का यहां लोगों को खाना नसीब नहीं हो रहा पापा भी घर नही आए तुम्हें मां बाजार जाकर इतनी मुस्कीलों से सामान खरीद कर लाती है। और तुम इसे फैंक देते हो अगर तुम्हें नही खाना था तो तुमने जुठा क्यंू किया हम यह खाना किसी एक को दे ही सकते थे। जिसे इस खाने की सच में जरूरत थी
तुम खाना ऐसे ही फैंकते रहोगें तो हमे भी सामने वाली चाची के यहां लाईन में लग कर खाना होगा। तभी रमेश का फोन आता है। और उमा उससे पूछती है। आपने खाना खाया रमेश बोलता है। मैं रात को नहीं खाता पूरे दिन में एक ही बार खाता हूं वह भी लम्बी लाईन में लगने के बाद खाना मिलता है।
यहां पैसे होते हुए भी भूखा रहना पड़ रहा। सभी होटल बंद है। उमा तुम अगर किसी को खाने की मदद कर सकती हो तो जरूर करना। लोग भूखे मर रहे है। तुम बच्चों का भी ध्यान रखना इतना बोलकर रमेश फोन रख देता है। शीतल और रोहन वहीं बैठे मां और पापा की बातें सुन रहे थे।
रोहन वहां से उठ कर अपने कमरे में चुपचाप चला जाता हैं। शीतल भी उसके पिछे आती है। तो देखती है। रोहन कमरे में बैठा रो रहा है। शीतल उसकी आंसू की वजह पूछती है। रोहन बोलता है। मैं यहा खाना फेंक देता हूं और मेरे पापा लाईन में लग कर खाना ले कर खाते है।
मैं यही सोचता था कि जिनके पास पैसे नही वही इतनी लम्बी लाईन में लग कर खाना ले कर खाते होगें। मुझे अपनी सोच पर शर्म आ रही है।
शीतल ने रोहन को कहां तुम रोना बंद करो। यह आंसू तुम पर नही जच रही हैं। मैं तुम्हें इतने दिनों से यही समझाना चाह रही थी। देर से ही सही पर तुम्हें समझ में तो आया। और पापा ने जो कहां हैं कल से जितना हो सकेगा हम भी लोगों की मदद जरूर करेगें।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं। कभी भी अपने पैसे पर घमंड नहीं करना चाहिए। पैसे से आप अपनी जरूरत की चीजें जरूर खरीद सकते हो पर कभी-कभी ऐसा भी वक्त आता हैं की पैसा होते हुए भी कुछ नही खरीद सकते हैं। यह लाॅकडाउन में सब को समझ में आ ही गया है।
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