Jahan Chah Wahan Raah Hindi Story: किसी गांव में बबलू नाम का लड़का था। वह अपनी मां, पिताजी और एक छोटी बहन के साथ रहता था। बबलू के पिताजी एक स्कूल में टीचर थे पर उनकी आमदनी ज्यादा ना होने के कारण वह स्कूल से घर आने के बाद शाम को बच्चों को ट्यूशन भी दिया करते थे।
एक दिन बबलू के पिताजी की तबियत खराब हुई और उनका देहांत हो गया। घर की सारी जिम्मेदारी अचानक बबलू पर आ गई। उसकी दसवीं की पढ़ाई अभी खत्म ही हुई थी।
बबलू मन ही मन घबरा रहा था। फिर उसने सोचा की अगर मैं ही घबरा जाऊँगा तो मेरी मां और मेरी बहन का क्या होगा?
पिताजी के देहांत के एक सप्ताह बाद ही बबलू अपनी मां को बोला की वह कल शहर जाएगा। बबलू की बात सुन मां परेशान हो गई और बोली अभी तेरे पिताजी हमे छोड़ कर चले गए।
अब तुभी शहर जाने की बात कर रहा हैं। मैं क्या बोलू तुम्हें कुछ समझ नहीं आ रहा हैं। बबलू मां को समझाता हैं कि मां यहां गांव में रह कर हमलोगों का गुजारा कैसे होगा। मैं यहां क्या करूँगा?
अगर मुझे आप शहर जाने की इजाजत दोगी तो मैं वहां कोई नौकरी कर लूंगा। मैं नौकरी मिलते ही आपको और छोटी को भी अपने पास शहर ले जाउंगा।
मां चुप हो कर बबलू की बातें सुनने लगी। उसके बाद बोली बेटा तुम्हें जाना हैं, तो तुम जाओ पर मैं गांव छोड़ कर कही नहीं जाउंगी। यहां इस घर मैं तुम्हारे पिताजी की यादें है। मैं उन्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाउंगी।
यह बोलकर मां रोने लगी। बबलू भी मां के साथ भावूक हो गया। फिर उसने जैसे-तैसे अपने आपको संभाला और मां को समझाने लगा।
मां आप उदास मत हो। मैं आपकी मर्जी के बिना कहीं भी नहीं ले जाउंगा।
आप मुझे जाने की इजाजत खुशी-खुशी देना क्योंकी छोटी को खुब पढ़ाना भी है। पिताजी का सपना मैं नहीं पूरा कर पाया पर छोटी को डाॅक्टर बनाना हैं। पिताजी का सपना पूरा करना अब मेरी जिम्मेदारी हैं।
अगली सुबह मां खुद बबलू को जगाते हुए बोली उठ बेटा उठ जा। क्या तुम्हें शहर नहीं जाना जल्दी से उठा जा सारी बसे चली जाएगी।
यह सुनते ही बबलू झट से अपनी बिस्तर से उठ खड़ा हो जाता हैं और तैयार होकर मां और अपनी छोटी बहन को प्यार कर घर से बस के लिए रवाना हो जाता हैं।
शहर आते ही वह नौकरी तलाश करने लगता हैं। वह मन ही मन सोचता हैं। जो भी नौकरी मिल जाए मैं कर लूंगा।
उसे उसी शाम एक होटल में बेटर की नौकरी मिल जाती हैं। बबलू बहुत खुश होता हैं। उसका रहना, खाना सब कुछ उसी होटल में था। मगर उसकी पगार कम थी। फिर भी बबलू खुश हो जाता हैं और वह उसी वक्त से होटल में काम करने लगता हैं।
वह स्वभाव का दयालू और दिल का साफ था। होटल का मैनेजर और होटल के स्टाप भी बबलू के इस स्वभाव से काफी खुश रहते थे।
उसके इस स्वभाव के कारण होटल में आए ग्राहक बबलू के इस व्यवहार से खुश हो कर टिप भी अच्छी दिया करते थे। बबलू अपनी नौकरी से बहुत खुश था। उसे रोज का करीब 1500 से भी ज्यादा टिप मिल जाया करता था।
वह अपनी जरूरत भर पैसे रख सारे पैसे गांव अपनी मां के पास भेज दिया करता था। उसकी मां और बहन भी बबलू के भेजे पैसे से गांव में खुश थे और उसकी बहन अपनी पढ़ाई मन लगाकर कर रही थी।
एक दिन की बात हैं। होटल के मैंनेजर ने सारे स्टाप को एक जगह बुलाकर बोल दिया की कल से यह होटल बंद हो रहा हैं अब नहीं खुलेगा।
आज रात तुम लोग यहां रूक सकते हो पर सुबह होते ही सभी लोग होटल खाली कर चले जाना। बबलू के साथ सभी स्टाप ने पूछा की होटल बंद क्यू कर रहे हैं। हमारा क्या होगा हम कहां जाएगें।
मैंनेजर नजरे झुका कर बोला की मालिक इस जगह पर अब पिज्जा हट खोल रहे हैं और उन्हें पढ़े-लिखें और जो कम्प्यूटर जानते हैं ऐसे स्टाप चाहिए।
सब लोग चुप हो गए और अपने-अपने कमरे में चले गए। रात भर कोई भी स्टाप नहीं सोया। सुबह होते ही सब होटल छोड़ कर जब जा रहे थे तो मैंनेजर ने सब को रूकने के लिए बोला।
उसके बाद मैंनेजर ने बोला उदास मत हो मेरी भी नौकरी चली गई हैं। मुझे तो इस उम्र में कहीं नौकरी भी नहीं मिलेगा।
मैंने सारी उम्र इस होटल मैं गुजार दी मेरा तो कोई अपना भी नहीं जिसके पास मैं जाउं। यहीं सब सोचकर कल रात मैं होटल के मालिक के पास गया तो मुझे कुछ पैसे दिए हैं।
इस पैसे पर अकेला मेरा हक नहीं हो सकता इसलिए इसे हम आपस में बांट लेते हैं। यह सुनकर सभी के चेहरे पर थोड़ी खुशी आई पर सब उदास मन से वहां से चले गए। मगर बबलू होटल के बाहर ही खड़ा था। वह सोच रहा था कि घर पर मैं जाकर मां को क्या बोलूगां।
मैं घर नहीं जा सकता मुझे आज ही नई नौकरी ढुढ़नी होगी। बबलू को परेशान देख कर होटल का मैनेजर उसे अपने साथ घर चलने को बोलता हैं। मगर बबलू मैनेजर के साथ चलने से इंनकार कर उसे आज ही नौकरी ढुढनी होगी ऐसा बोलता है।
मैंनेजर ने बबलू को समझाया ठीक है नौकरी ढूंढ़ लेना पर इतनी सुबह कहां जाओगें। मेरे साथ चलो थोड़ी दूरी पर ही मेरा घर है। वहां अपना सामान रख नौकरी ढूंढने चले जाना।
बबलू ने बोला ठीक है और मैनेजर के घर चला गया। वहां पहुंचकर मैंनेजर अपने रसोई में चाय और पकोड़े बनाने को गया। बबलू ने मैंनेजर को बैठने को बोला, मैं बनाता हूं चाय और आपको पकोड़े बना कर खिलाता हूं।
मुझे यहीं बनाने आता हैं। मैंनेजर भी बबलू की बातें सुनकर हँस पड़ा। बबलू ने वाकई में चाय और पकौड़े बहुत ही स्वादिष्ट बनाया। मैंनेजर ने बहुत तारीफ की उसके बाद उसने बबलू को एक सलाह दी क्यों ना वह चाय और पकौडे़ का अपना ही दुकान खोल लें। इतना स्वादिष्ट बनाते हो सच में बहुत चलेगा।
मैंनेजर की बात सुन कर बबलू को यह ठिक नहीं लग रहा था की वह एक चाय की दुकान खोलें। मैंनेजर ने बबलू को बोला की चाय बेचने में क्या बुराई है।
हमारे जो प्रधानमंत्री हैं। वह भी एक चाय बेचने वाला ही है। हालाँकि, आज तक किसी ने उन्हें चाय बेचते नहीं देखा। यह बोल वह मैंनेजर मुस्कुराने लगा।
मैनेजर ने फिर बबलू को बोला की चलो तुम अकेले नहीं करोगें तो हम पार्टनर बन कर करते है। तुम्हें जो पगार मिलती थी वहीं मिलेगी तुम बनाना और मैं बेचूँगा।
यह बात सुनते ही बबलू ने बोला नहीं मैं बना भी लूंगा और बेच भी लूंगा। आप सिर्फ पैसे का हिसाब ग्राहक से करना। दोनों चाय और पकौड़े खाकर, घर से बाजार में दुकान कि तलाश मैं गए। उन्हें एक दुकान भी मिल जाती है जिसका किराया वो दोनों आराम से दे पाए।
मैंनेजर ने बबलू को बोला तुम मेरे साथ मेरे ही घर मैं रूक जाना और तुम्हें अगर रूकने मैं कोई तकलीफ हो तो जो मर्जी साथ में रहने का किराया भी दे देना। यह बोल कर मैंनेजर हंसने लगा।
बबलू ने फिर कुछ नहीं बोला और मैंनेजर के साथ उसके घर मैं ही रहने लगा। अगले दिन से ही दोनों ने अपनी चाय और पकोड़े की दुकान खोल लीं। सचमुच इनकी दुकान चल पड़ी रोज का 3 से 4 हजार तक के चाय और पकौड़े बेचने लगें।
धीरे-धीरे उन्होंने अपनी दुकान और बड़ी कर ली और जो भी स्टाप होटल के उनके जानने वाले थे। बबलू ने उन्हें भी अपनी ही दुकान मैं काम करने के लिए बुला लिया। सब खुश थे क्योंकि सभी को फिर से एक साथ काम करने का मौका मिला।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कभी भी कितनी भी परेशानी में आप हो हिम्मत मत हारों और अपने जानने वाले को परेशानी में कभी भी अकेला मत छोड़ों। सब के पास एक ना एक हुनर ऐसा होता हैं। जो किसी और के पास नहीं होता। बस हमें अपनी और अपने जानने वालों की उस हुनर को पहचान उन्हें बताना होता हैं उसके बाद उसे आगें पढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
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