Brahman aur Teen Thag ki Kahani : एक गांव में तोताराम नाम का एक ब्राह्मण रहता था। तोताराम बहुत ही दयालु और सीधा-साधा व्यक्ति था। वह एक दिन पड़ोस के गांव में पूजा करवाने गया।
पूजा के बाद तोताराम को एक मोटी ताजी दूध देने वाली बकरी दान में मिली।
तोताराम उस बकरी को देखकर बहुत खुश हुए और खुशी-खुशी उस बकरी को अपने साथ लिए घर को चल दिए। तोताराम घर जल्दी आना चाहते थे, इसलिए उन्होंने जंगल का रास्ता ले लिया।
जंगल के उन रास्तों पर तीन ठगों का सम्राज्य था। वे इतने चालाक और धूर्त थे कि बातों ही बातों में ठग लिया करते थे।
पंडीत तोताराम उन जंगलों से जल्दी-जल्दी अपने घर के रास्ते की ओर चले जा रहे थे। आंखों में उनकी खुशी सांफ-सांफ झलक रही थी। होठों पर मुस्कान को लिए घर पहुंचने की जल्दी थी।
तभी तोताराम की कदमों की आवाज उन तीन ठगों के कान में पहुंची। वो तीनों तोताराम के साथ उस बकरी को देखकर खुश हो गए।
बकरी काफी हठी-कठी और दूध देने वाली थी। उन तीन ठगों का मुंह उस बकरी को देखकर खुली की खुली रह गयी। उन्होंने सोचा इस बकरी को पंडित से कैसे ठगा जाए।
ठगों के सरदार ने दोनों साथियों को अपनी योजना बताई कि कैसे बकरी ठगी जा सकती हैं । योजना सुनकर ठग खुशी से झूम उठे।
योजना के अनुसार तीनों ठग अलग-अलग स्थान पर जाकर खडे़ हो गए।
फिर जैसे ही पंडित तोताराम तीनों ठग में पहले ठग के करीब आया तो उन्होंने श्रद्धा से झुक कर प्रणाम किया।
एक ने कहा- ‘‘राम राम पंडीत जी।‘‘
तोताराम जी ने भी कहां- सदा सुखी रहो। आनन्द करो।
पहले ठग ने कहा- पंडितजी आज ये कुत्ता कहां लिए जा रहे है?
पंडितजी यह सुनते ही गुस्सा में आ गया। उन्होंने कहा- मुर्ख इंसान यह कुत्ता नहीं बकरी है। जो की पास वाले प्रधान ने मुझे दान में दिया है।
तभी ठग ने कहा- माफ कीजिए पंडितजी, पर आपके साथ लगता हैधोखा हुआ है।
पंडितजी बोले- कैसा धोखा?
यही कि बकरी बोलकर आपको कुत्ता दान में दे दिया गया।
पंडित ने आश्चर्य से पूछा- क्या यह कुत्ता है?
तोताराम सोच में पड़ गए। कभी वह बकरी की ओर देखता तो कभी उस ठग की ओर।
तोताराम थोड़ी देर बाद बोले नहीं-नहीं यह बकरी ही है। तुम मुझसे मजाक करना बंद करो। मुझे जल्दी ही घर पहुंचना है। यह कह कर पंडितजी तेजी से आगे बढ़ गए।
तोताराम अपनी बकरी के साथ थोड़ा ही आगे बढ़ें थे कि उनको दूसरा ठग अपनी योजना के अनुसार मिल गया. दूसरे ठग ने पंडितजी से कहा- राम-राम पंडित जी, यह आप अपने साथ क्या लिए जा रहे हैं?
पंडित जी ने कहा- सदा खुश रहो। बकरी है भैया, दान में मिली है।
दूसरे ठग ने जोर से ठहाका लगाकर कहा, कमाल है पंडितजी, आपको कुत्ते और बकरी में फर्क भी नहीं दिखता? अभी तो आपकी आंखे इतनी कमजोर भी नही हुई है।
पंडितजी को जोर का गुस्सा आने लगा। उन्होंने गुस्से में बोला, यह तुम क्या बोल रहे हो, बकरी को कुत्ता बताते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती।
पंडितजी, शर्म तो उस आदमी को आनी चाहिए जिसने आपके साथ धोखा किया है, गरीब ब्राह्मण को सीधा-सादा जानकर उसे बकरी बोलकर कुत्ता ही दान में दे डाला, कहकर दूसरा ठग ने मुंह बना लिया।
अब पंडितजी जोर से चिल्लाये। भैया, यह बकरी है बकरी। दरअसल अब उसे अपना विश्वास कमजोर होता दिखाई दे रहा था।
ठग ने बोला- पंडितजी, अब आपके चिल्लाने से कुत्ता बकरी तो नही बन सकता, फिर हमें आपसे क्या, आपके इस दान से क्या लेना देना। हम तो जो देख रहे है वही तो बोल रहे हैं।
फिर भी पंडितजी उसकी बातों को अनसुनी कर आगे बढ़ गए मगर थोड़ी ही दूर पर तीसरा ठग मिल गया।
तीसरे ठग ने कहा नमस्ते पंडित जी, आप कब से कुत्ता को टहलाने लगे? पंडित जी भरक गए और बोले यह बकरी, कुत्ता नहीं।
तीसरा ठग जोर-जोर से हंसते हुए बोला की क्या पंडितजी आप भी न मजाक करने लगे, आपको बकरी और कुत्ता में अंतर नहीं पता है।
अब पंडित तोताराम को विश्वास हो गया की उसके साथ धोखा हुआ है। वह सोचने लगा अगर इस कुत्ते को अपने साथ लिए घर जाता हूं तो अभी तो बस यह तीन लोग मुझे पागल समझा है। फिर पूरा गांव मेरा मजाक बनाएगा।
पंडिताइन तो मुझे कुत्ते के साथ देखकर घर के अंदर प्रवेश भी नही करने देगी। यह सोचते हुए क्रोध में आकर बकरी को जंगल में ही छोड़ कर तोताराम उस प्रधान को कोसता हुआ अपने घर की राह ली। इस प्रकार ठगों ने अपनी चालाकी से पंडित तोताराम की बकरी हथिया ली।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं। कभी भी अनजाने व्यक्ति की बातों पर यकिन और भरोसा नहीं करना चाहिए। वह मालूम नही कब और कहां आपको ठग ले हमेशा अपने दिमाग से काम करना चाहिए।
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