Bandar ki kahani in hindi | बंदर की कहानी | Story of monkey in hindi

आज हम आपको बंदर की कहानी (Bandar ki kahani in hindi) सुनाने जा रहे हैं. जिससे आपका भरपूर मनोरंजन होगा. अक्सर बच्चे बंदर की कहानी से काफी इंजॉय करते हैं. जिसके कारण 3 कहानियों (Story of monkey in hindi) की संग्रहित करने का प्रयास कर रहे हैं.

बन्दर और बिल्ली की कहानी | Bandar aur billi ki kahani in hindi

दो बिल्लियां थी. एक दिन वो दोनों बाजार जा रही थी. अचानक से उन्हें रास्ते पर गिरा एक रोटी दिखा. उनमे से एक बिल्ली ने उछलकर फ़ौरन उस रोटी को उठा लिया. दूसरी बिल्ली उस रोटी को छीनने लगी.

पहली बिल्ली ने कहा, “चल हट, यह मेरी रोटी है. इसे पहले मैंने उठाया है. इसलिए यह मेरा है.

इस पर दूसरी बिल्ली गुस्सा होते हुए बोली, “मगर पहले इस रोटी को मैंने देखा है, इसलिए यह मेरा हुआ.”

दोनों झगड़ ही रहे थे कि उसी समय एक बन्दर उधर से जा रहा था. दोनों बिल्लियों ने उस बन्दर से प्रार्थना की, “भाई, तुम्ही फैसला कर दो और हमारा झगड़ा निपटा दो.”

बन्दर ने कहा, ” लाओ यह रोटी मुझे दो. मै इसके बराबर-बराबर हिस्से करूंगा और दोनों को एक-एक हिस्सा दे दूंगा.”
इसके बाद बिल्ली से लेकर बन्दर ने रोटी का दो टुकड़ा किया. उनसे दोनों टुकड़ो को बारी-बारी से देखा, फिर उसने अपना सिर हिलाते हुए कहा, “दोनों टुकड़े बराबर नहीं है. यह टुकड़ा दूसरे टुकड़े से बड़ा है.” उसने बड़े टुकड़े में से थोड़ा-सा हिस्सा खा लिया. फिर भी दोनों हिस्से बराबर नहीं हुए.
बन्दर ने फिर बड़े टुकड़े में इस थोड़ा हिस्सा खा लिया. बन्दर इसी तरह बार-बार थोड़ा-थोड़ा हिस्सा खाने लगा. इससे अंत में रोटी के केवल दो छोटे-छोटे टुकड़े ही बचे. इसके बाद बन्दर हसते हुए बोला कि तुमलोग इतना छोटा टुकड़ा खाकर क्या करोगे? चलो मैं ही खा लेता हूं और वह खा गया और चलता बना. इस तरह दो बिल्लियों की लड़ाई में तीसरे यानि बन्दर को फायदा हो गया. इस तरह दोनों बिल्लियों के पास पछताने के सिवा कोई चारा नहीं था.

बंदर और टोपी की कहानी | Topiwala Aur Bandar Ki Kahani In Hindi

Hindi Story: एक आदमी बाजार से वस्तुएं खरीदकर उन्हें गांव में फेरी लगाकर बेचा करता था. यही उसकी जीविका का साधन था. एक बार उसने रंग- बिरंगी टोपियां खरीदी और फेरी पर निकल गया. जून का महीना था. दोपहर का समय हो चला था. वह जंगल में जा रहा था. आदमी को चलते-चलते थकान महसूस होने लगी. गर्मी और धुप भी बहुत थी. इसलिए वह एक वृक्ष ने नीचे बैठ गया. उसने अपने टोपियों की गठरी एक ओर रखा दी और लेट गया. पेड़ के छांव में ठंढी-ठंडी हवा के चलने से उनको नींद आ गई.
ठीक उसी पेड़ पर कुछ बंदर बैठे थे. उन्होंने जब देखा कि वृक्ष के नीचे आराम कर रहा आदमी सो रहा है तो वे वृक्ष से उतारकर नीचे आ गए. उन्होंने वहां रखी गठरी देखी और उसे खोल दिया. गठरी में बहुत सी टोपियां थी. हम सभी को पता है कि बंदर दूसरों की नक़ल करते हैं और सोया हुआ आदमी टोपी पहने था. बस उसी को देखकर सभी बंदर ने एक-एक टोपी निकल कर पहन ली.
टोपी पहन कर बंदर की शक्ल अजीब तरीके की लग रही थी. इसलिए बंदर एक दूसरे को देखकर आपस में हंस रहे थे. इसके बाद खुश होकर नाचने लगे और पेड़ पर उधम माचने लगे. कुछ पड़े के डाल को जोर-जोर से हिलने लगे. ऐसी शोर-शराबे के बीच उस आदमी की आंख खुल गयीं.
जब वह जागा तो हैरान रह गया कि उसकी गठरी से सारी टोपियां गायब है और बंदर ने पहन ली है. उसको बहुत दुःख हुआ और गुस्सा भी आया. मगर वह कर भी क्या सकता था, वह अकेला और बंदर बहुत सारे और वो भी पेड़ पर. वह अपने हाथों से अपना चेहरा ढककर कुछ उपाय सोचने लगा.
काफी सोचने के बाद उनको एक उपाय सूझी. उसने सोचा कि बंदर नकलची होते हैं, अगर बंदरों को दिखाकर अपनी टोपी उतर कर फेंक दूं तो ये नक़ल करने के चक्कर में अपनी-अपनी टोपियां उतर कर फेंकेगे. फिर उसने तुरंत ही अपनी टोपी उतर फेंकी. उसकी नक़ल करते हुए बंदरों ने भी अपने-अपने सिर की टोपियां उतारी और जमीन पर फेंक दी.
टोपी वाले ने पत्थर फेंक-फेंक कर बदरों को भगा दिया और जल्दी से अपनी टोपियां समेट कर गठरी में बांध ली. गठरी को हाथ के बगल में लेकर अपने कंधे में टांग लिया और गांव की तरफ चल दिया.
इसलिए दोस्तों कहा गया है कि विपत्ति में कभी भी घबराना नहीं चाहिए. अगर संयम और सूझ बुझ से काम लें तो बड़े-बड़े काम बन जाते हैं.

तीन बंदर की कहानी कहानी | Three Monkey hindi story

स्कुल में ग्रीष्मावकाश हो गया था. शिवानी और आदित्य अपनी माताजी के साथ ननिहाल गए थे. ननिहाल में अपने ममेरे भाई-बहनों के साथ शिवानी और आदित्य खेलते तो उन्हें बड़ा आंनद आता. चारों ही बच्चे अपने गांव-घर की बातें करते रहते. गांव के और भी बच्चे उनके साथ आकर खेलने लगते.
एक दिन उन बच्चों ने अपने-अपने जन्मदिन की बात बताई कि मेरा जन्म-दिन कैसे मनाया गया. उन्होंने यह भी बताया कि जन्म-दिन पर उन्हें क्या-क्या उपहार मिले.
अपनी बारी आने पर एक बालक ने अपने जन्मदिन की कहानी सुनाई. वह सुनाने लगा- जन्मदिन वाले दिन वह शाम को अपने पिताजी के आने की प्रतीक्षा कर रहा था कि वे मेरे लिए जन्म-दिन का क्या उपहार लाते हैं?
शाम को जब पिताजी घर लौटे तो उनके हाथों में एक पैकेट था. मुझे समझते देर न लगी कि यह मेरे जन्म-दिन का उपहार है.
पिताजी ने अपने हाथ का पैकेट मुझे देते हुए कहा- “अंकुर. लो अपना जन्म-दिन का उपहार.” मैंने बड़े उत्साह के साथ पैकेट खोला. पैकेट में तीन बंदरों की मूर्ति थी. मैं उन्हें देखकर उदास हो गया.
आगे उस बालक ने बताया कि पिताजी से मेरी उदासी छिप न सकी. उन्होंने कहा- “बेटा, यह अनोखा उपहार ही है. यह तुम्हारे जीवन को सफल बनाने का काम करेगा. मैंने बहुत ध्यान दिया तो मेरी भी समझ में आ गया और मुझे वह उपहार बहुत ही अच्छा लगा.”
सभी बच्चों ने वह उपहार देखने की इच्छा प्रकट की तो अंकुर उन्हें अपने घर ले गया. अंकुर ने वह उपहार अपने सब साथियों को दिखाया. अपने उपहार का परिचय करवाते हुए वह बोला- “देखो, ये तीन बंदरों की मूर्तियां हैं.”
गोविन्द बोला-” तीनों बंदरों में से एक ने अपनी आखें बंद कर राखी हैं.” गौरव ने कहा- “हाँ, और दूसरा कानों पर हाथ रखे हुए है.”
प्रशांत बोल उठा- “और तीसरे ने अपना मुंह बंद किया हुआ है.”
आदित्य  ने कहा- “आप तीनों ही ठीक कह रहे हैं. अब मैं इस पहेली का खुलासा करता हूं, ध्यान से सुनना.”
आदित्य ने बताना शुरू किया- “जिस बन्दर ने आंखें बंद की हुई है, वह कहता है कि किसी का बुरा होते हुए मत देखों. दूसरा कानों पर हाथ रखे हुए है उसका मतलब है कि किसी का बुरा मत सुनों. तीसरे ने मुंह बंद करके यह बता रहा है कि किसी को बुरा मत बोलो.”
इस पर गौरव बोल उठा कि इसका अर्थ यह हुआ कि हम किसी को न दुखी देखें, किसी की बुराई न कानों में जाने दें और किसी को कड़वी बात न कहें.
अंकुर ने कहा- “तुम्हारा कहना बिलकुल ठीक है.” इसके बाद सब बच्चे अत्यंत प्रसन्न हो गया और अपने घर चले गए. इस कहानी का अभिप्राय है कि बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो.
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