Akbar Birbal ki kahaniyan: अकबर और बीरबल की कहानी हर कोई सुनना पसंद करता है। बीरबल को हाजिर-जवाबी और बुद्धिमान के रूप में जाना जाता है। उनके बारे में कई किस्से कहानी प्रचलित है। जिसमें से कुछ विशेष कहानी आपके लिए लेकर आये हैं. जो न केवल आपको हंसायेंगे गुदगुदायेंगे, बल्कि आपको अच्छी सीख मिलने को मिलेगा।
अकबर और बीरबल की कहानियां | Akbar Birbal ki kahaniyan
प्रश्न अकबर के, उत्तर बीरबल के | अकबर बीरबल की कहानी पढ़ने वाली हिंदी में
भारत के मुगल शासकों में बादशाह अकबर का नाम बहुत प्रसिद्ध है। अकबर बादशाह विद्वानों का बहुत आदर करते थे। उनके दरबार में बहुत से विद्वान रहते थे, उनमें से नौ विद्वान प्रसिद्ध रहा करते थे। इन्हें नौ रत्न कहा जाता था। बीरबल भी उनमें से ही एक थे वे अपनी बुद्धिमानी और तुरंत उत्तर के लिए प्रसिद्ध थे।
बादशाह अकबर अपने दरबार के विद्वानों के सामने प्रश्न रखते थे और विद्वान उनका उत्तर देते थे। इस प्रकार विद्वानों की बुद्धि का परिचय भी होता रहता था और मनोरंजन भी।
एक दिन की बात है एक बार बादशाह अकबर के दरबार में वो नौ रत्न उपस्थित थे। तभी बादशाह अकबर ने उनसे पाँच प्रश्न करके उनका
उत्तर देने के लिए कहाँ। वे प्रश्न थे-
- फूल किसका अच्छा?
- दूध किसका अच्छा?
- मिठास किसकी अच्छी?
- पत्ता किसका अच्छा?
- राजा कौन सा अच्छा?
बादशाह के ये प्रश्न सबने सुने और अपनी-अपनी बु़िद्ध के अनुसार उत्तर भी दिए। सबके मत अलग-अलग थे। किसी ने गुलाब के फूलों को सबसे अच्छा बताया तो किसी ने कमल की प्रशंसा के गीत गाए। इसी प्रकार किसी ने गाय का दूध अच्छा बताया। किसी ने बकरी और किसी ने ऊँटनी का। किसी ने गन्ने की मिठास के गुण गाए तो किसी ने शहद की प्रशंसा की। किसी ने केले का पत्ता अच्छा कहा तो किसी ने नीम के पत्तों को गुणकारी बताया। किसी ने राजा विक्रमादित्य को अच्छा कहा तो किसी ने अकबर को।
बदशाह ने इन सभी का उत्तर सुना पर उनको संतोष जनक उत्तर नहीं मिला।
उन्होंने बीरबल से भी इन पाँचों प्रश्नों के उत्तर पूछे। बीरबल ने तनिक-सा विचार किया और उत्तर देना आरंभ कर दिया।
बीरबल ने कहा-
- फूल कपास का सबसे अच्छा होता है क्योंकि उसी से सारी दुनिया का परदा रहता हैं।
- दूध माँ का सबसे अच्छा होता है क्योंकि उसे पीकर ही बचपन में पालन होता है और शरीर का विकास होता है।
- मिठास वाणी (बोली) की सबसे अच्छी होती है क्योंकि वह बोलने वाले का सुनने वाले से मधुर संबेध रखती है।
- पत्ता पान का अच्छा होता है जिसे भेंट करने से शत्रु भी मित्र बन जाता है।
- राजाओं में सबसे अच्छा देवराज इंद्र हैं क्योंकि उन्हीं की आज्ञा से मेघ बरसते हैं जिससे न केवल मनुष्यों, अपितु पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े सभी का पालन होता है।
बीरबल के उत्तर को सुनकर बादशाह अकबर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बीरबल की बुद्धि की बहुत प्रशंसा की।
सोने का खेत अकबर बिरवल की कहानी | अकबर और बीरबल की मजेदार कहानियाँ
महाराज अकबर को अपने महल में एक गुलदस्ते से बहुत प्यार और लगाव था। वह गुलदस्ता बचपन में उनकी अम्मी ने उनके जन्मदिन पर उपकार में दिया था।
अकबर उस गुलदस्ते को अपने बिस्तर के सिराहने रखते थे। एक दिन कमरे में सफाई करते वक्त किसी नौकर के हाथ से गुलदस्ता गिर कर टुट जाता है।
नौकर अपना सारा काम छोड़कर उस गुलदस्ते को जोड़ने लग जाता है। नौकर सारा दिन गुलदस्ते जोड़ने की कोशिस करता रहता है। पर गुलदस्ता नहीं जुड़ता अंत में तंग आकर नौकर टुटे गुलदस्ते को कुड़े दान में फेंक देता है। और वहां से चला जाता है।
महाराज अकबर रात को जब अपने महल के कमरे में पहुंचते है तो गुलदस्ता कमरे में नही देखकर नाराज होते है। तुरन्त कमरे की सफाई करने वाले को बुलाया जाता है। और गुलदस्ते के बारे में पूछा जाता है।
नौकर रात को महराज के डर से बोल देता है। गुलदस्ता काफी गंदा हो गया था। वह सुबह अपने घर से साफ कर ले जाएगा। महराज उसे जाने देते है। और बोलते हैं आईन्दा गुलदस्ते को कमरे से बाहर ना ले जाए। और सुबह जल्दी ही उसे वापस ले आए।
पूरी रात नौकर अपने घर में सोता नहीं वह बेचैन और परेशान घर में इधर-उधर धुमें जा रहा होता है। इस तरह नौकर को परेशान देख उसकी पत्नी ने उसकी परेशानी की वजह पूछती है। तो वह रोने लगता है। और अपनी पत्नी को बताता हैं की सफाई करते समय गुलदस्ता उसके हाथों से जमीन पर गिर कर टूट गया है।
उसकी पत्नी ने बोला एक गुलदस्ता ही तो हैं महराज दूसरा ले जाएगें तुम ने उनसे झूठ क्यों बोला और अब सुबह तुम महल में क्या ले जाआगें।
पत्नी ने उसे कहा तुम महल में दरबार लगने के बाद जाओं और दरबार में बीरवल और अन्य लोगों के सामने सच बोल देना महाराज अकबर तुम्हें क्षमा जरूर कर देगें।
पत्नी की बात सुनने के बाद वह थोड़ा बेहतर महसूस करने लगा और सो गया। सुबह वह दरबार शुरू होने के बाद नौकर अकबर से अपनी गलती और झूठ की मांफी मांगने लगता है।
अकबर बहुत गुस्से में आ जाते है। और बोलते है की अगर गुलदस्ता टूट गया था। तो तुमने झूठ क्यों बोला और नाराज होकर नौकर को फांसी की सजा सूना देते है।
अकबर को ऐसा करने से बीरवल रोकने की कोशिस करता है। और महाराज को बोलते है की हर इंसान अपनी पूरी जिंदगी में एक ना एक बार झूठ जरूर बोलता है। और इसने तो मांफी भी पूरी सभा में आकर मांगी है। ऐसी हिम्मत सब में नही होती।
महाराज अकबर बीरबल से नाराज होते हुए पूछते है कि क्या तुमने भी हमारे राज्य में कभी झूठ बोला है। बीरबल अकबर को समझाने की पूरी कोशिस करता है की जिस झूठ से किसी का नुकसान नहीं होता वह झूठ नहीं माना जाता।
पर महाराज बीरबल की इस बात से बिल्कुल सहमत नही होते और बीरवल को उसी वक्त राज्य से निकल जाने का आदेश दे देते है।
अकबर ने दरबार में बैठे सभी राजपुरोहितों और अन्य से पूछा की आप में से और कौन-कौन झूठ बोलता है। वह अभी इस राज्य से चला जाए। पर सभी ने यह बोला की वह झूठ नहीं बोलते।
बीरवल को भरी सभा से निकल जाने को अकबर का यह आदेश अपमान जनक था। और बीरवल यह अपमान वर्दास्त नही कर पा रहा था। उसे किसी तरह अपनी बात को साबित करनी थी की हर व्यक्ति कभी ना कभी झूठ बोलता है।
बीरवल को एक तरकीब सूझी वह तुरन्त एक सोनार के यहा गए और मकई का एक छोटा रेरी और सोने के कुछ मकई के दाने बनावा लिए।
अगली सुबह वह राजा अकबर के दरवार में फिर उपस्थित हुए। अकबर उन्हें देखते हि उनसे पूछा कि आप यहां क्या कर रहे है।
बीरवल ने अकबर को कहा महाराज मुझे एक बाबा ने मकई के सोने के कुछ दाने और रेरी दिया है और बोला है अगर इसे लगाउंगा तो पूरी खेत में सोने के मकई के फसल होगें।
तो मुझे खेत की जरूरत है। अकबर बीरवल की इस बात से खुश हो जाते है और अपने राज्य में सोने की फसल उगाने के लिए बीरवल को खेत देने के लिए राजी हो गए। बीरवल ने अकबर और दरवार में उपस्थित सभी को खेत में चलने को आमंत्रित किया सभी खुशी-खुशी बीरवल के साथ चल दिए।
खेत में पहुंच कर बीरवल ने मकई के दाने को राजपुरोहितों की ओर बढ़ाया और बोला मुझे बाबा ने बोला था कि खेत में तभी फसल सोने की उपजेगीं जब कोई ऐसा व्यक्ति इसे खेत में डालेगा जिसने अपनी पूरी जिंदगी में कभी झूठ ना बोला हो। वहां उपस्थित सभी ने सोने के बिच लेने से मना कर दिया।
बीरवल ने आखरी में सोने के मकई के बीच महाराज अकबर की ओर बढ़ाई अकबर ने भी बीच लेने से इंकार कर दिया और बोला मैने भी बचपन में खेल-खेल में काफी झूठ बोला है।
यह बोल कर अकबर ने बीरवल को गले से लगा लिया और उससे अपनी गलती की क्षमा मांगी और उस नौकर को भी फांसी की सजा से मुक्त कर दिया।
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